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45%से 19.5%रह गया कांग्रेस का वोट शेयर
डॉ.एस.शर्मा.देश की सबसे पुरानी राजनीतिक पार्टी कांग्रेस की 28 दिसंबर 1885 को एओ ह्यूम ने नींव रखी थी और व्योमेश बनर्जी कांग्रेस पार्टी के पहले अध्यक्ष बने थे. आजादी के बाद साल 1952 में कांग्रेस पहली बार चुनावी राजनीति में उतरी. पंडित जवाहरलाल नेहरू की अगुवाई में साल 1952 के लोकसभा चुनाव में कांग्रेस ने 401 में से 364 सीटें जीतकर इतिहास रच दिया था.
ऐसे गिरा वोट शेयर
वर्ष वोट शेयर
1952 45%
1957 47.8%
1962 44.7%
1967 40.8 %
1971 43.7%
1977 34.5% (इमरजेंसी)
1980 42.7% ( पार्टी ने की वापसी)
1984 48.1% ( इंदिरा गांधी की हत्या)
1989 39.5% ( पार्टी के बुरे दिन शुरू)
1991 36.4%
1998 25.8% (सोनिया का काल)
1999 28.3%
2004 26.5%
2009 28.6%
2014 19.5% (मोदी की आंधी)
2019 19.5%
ऐसे समझें पार्टी का पूरा गणित
1957 के लोकसभा चुनाव में पार्टी का प्रदर्शन और बेहतर हुआ. वोट शेयर में भी बढ़ोतरी हुई. साल 1962 और 1967 के आम चुनाव में लोकसभा सीटों की संख्या बढ़ी, लेकिन कांग्रेस का प्रदर्शन पिछले चुनाव के मुकाबले खराब हुआ.1962 के आम चुनाव में भी कांग्रेस का वोट शेयर घटा. 1967 में हुए चुनाव में हालत और खराब हुई और पार्टी की लोकप्रियता कम होती दिखाई दी. 1971 के लोकसभा चुनाव में भी वोट शेयर में गिरावट जारी रही.
1977 में पहला बड़ा झटका
साल 1977 का लोकसभा चुनाव कांग्रेस के लिए बहुत बुरा साबित हुआ. इमरजेंसी के ठीक बाद हुए चुनाव में कांग्रेस को करारी हार का सामना करना पड़ा था. लेकिन 3 साल बाद यानी 1980 के लोकसभा चुनाव में पार्टी ने फिर वापसी की और अपना वोट शेयर बढ़ाया.
फिर आई कांग्रेस की आंधी
1984 का लोकसभा चुनाव कांग्रेस की आंधी जैसा था. इंदिरा गांधी की हत्या के ठीक बाद हुए चुनाव में पार्टी ने रिकार्ड सीटें जीतीं. लेकिन इसके बाद पार्टी का बुरा दौर शुरू हुआ. कांग्रेस सत्ता में तो आई, लेकिन अपना वोट शेयर बरकरार नहीं रख पाई. बीजेपी और दूसरी क्षेत्रीय पार्टियों के उदय के बाद कांग्रेस का वोट शेयर लगातार गिरता गया. 1989, 1991 के लोकसभा चुनाव में कांग्रेस के वोट शेयर में जबर्दस्त गिरावट देखी गई.
सोनिया भी नहीं संभाल पाईं
साल 1998 में सोनिया गांधी ने कांग्रेस की कमान संभाली और अध्यक्ष की कुर्सी पर बैठीं. इसी साल हुए आम चुनाव में वोट शेयर में बढ़ी गिरावट दर्ज की गई.फिर 1999 के चुनाव में हालत नहीं सुधरी. 2004, 2009 के लोकसभा चुनाव में कांग्रेस की हालत पतली होने लगी.
नमो की सुनामी
2014 और 2019 का लोकसभा चुनाव कांग्रेस के लिए बहुत बुरा साबित हुआ. इस दौरान राहुल गांधी भी कुछ वक्त के लिए कांग्रेस के अध्यक्ष बने. साल 2014 के लोकसभा चुनाव में नरेंद्र मोदी की आंधी में कांग्रेस महज 44 सीटें ही जीत पाई. 2019 के लोकसभा चुनाव में भी यही सिलसिला बरकरार रहा.
गांधी परिवार से नहीं
जेबी कृपलानी : देश की आजादी के दौरान कृपलानी कांग्रेस की अध्यक्ष रहीं. उन्हें साल 1947 में मेरठ में कांग्रेस के अधिवेशन में यह जिम्मेदारी मिली थी. उन्हें महात्मा गांधी के भरोसेमंद व्यक्तियों में माना जाता था.
पट्टाभि सीतारमैय्या : साल 1948 में जयपुर अधिवेशन में पार्टी प्रमुख के रूप में चुने गए थे. साल 1949 में दोबारा फिर से उन्हें कांग्रेस अध्यक्ष चुना गया.
पुरुषोत्तम दास टंडन : 1950 में काग्रेस के अध्यक्ष बने. नाशिक अधिवेशन में उन्हें चुना गया था. हालांकि, तीनों ही नेताओं के अध्यक्ष रहते हुए आम चुनाव नहीं हो सके थे, क्योंकि उस समय तक अंतरिम सरकार चल रही थी.
यू एन ढेबार : पंडित जवाहर लाल नेहरू ने कांग्रेस की कमान छोड़ी तो यू एन ढेबार अध्यक्ष चुने गए. ढेबार 1955 में पहली बार अध्यक्ष बने और पांच साल 1959 तक रहे. अमृतसर, इंदौर, गुवाहाटी और नागपुर के अधिवेशनों में अध्यक्ष चुना गया था.
नीलम संजीव रेड्डी : ढेबार के बाद नीलम संजीव रेड्डी 1960 में कांग्रेस के अध्यक्ष बने और 1963 तक पद पर रहे. नीलम रेड्डी के अध्यक्ष रहते हुए 1962 में लोकसभा चुनाव हुए थे. साल 1977 से 1982 तक वे भारत के छठे राष्ट्रपति रहे.
के. कामराज : भारतीय राजनीति में किंगमेकर कहे जाने वाले के. कामराज 1964 में कांग्रेस के अध्यक्ष चुने गए थे और 1967 तक अपने पद पर रहे. कहा जाता है कि के. कामराज ही थे, जिन्होंने नेहरू की मौत के बाद लाल बहादुर शास्त्री को प्रधानमंत्री बनाने में अहम भूमिका निभाई थी.
एस. निजलिंगप्पा : कर्नाटक के एकीकरण में अग्रणी भूमिका निभाने वाले और राज्य के पहले मुख्यमंत्री एस. सिद्धवनल्ली निजलिंगप्पा 1968 में कांग्रेस के अध्यक्ष बने थे. यह वही समय था जब कांग्रेस का विभाजन हुआ, तो उन्होंने ही इंदिरा गांधी के नेतृत्व वाले गुट के खिलाफ संगठन के मोर्चे का समर्थन किया था. हालांकि, वो लगातार दो बार कांग्रेस के अध्यक्ष रहे, लेकिन उनके कार्यकाल में एक बार भी लोकसभा चुनाव नहीं हो सके.
जगजीवन राम : कांग्रेस का दलित चेहरा और कद्दावर नेता जगजीवन राम साल 1970 में कांग्रेस अध्यक्ष बने और 1971 में भी दोबारा फिर से चुने गए. जगजीवन राम का कार्यकाल सफल रहा था और उन्हें इंदिरा गांधी का वफादार और पार्टी के लिए संकट मोचन के तौर पर भी जातना जाता था.
एसडी शर्मा :जगजीवन राम के बाद कांग्रेस की कमान शंकर दयाल शर्मा ने 1972 में संभाली. चार साल तक कांग्रेस के अध्यक्ष के रूप में कार्यरत रहे. गांधी परिवार के करीबी नेताओं में उन्हें गिना जाता था और बाद में राष्ट्रपति भी बने. इंदिरा से लेकर सोनिया तक के करीबी रहे.
देवकांत बरुआ : देवकांत बरुआ साल 1975 में कांग्रेस के अध्यक्ष बने और 1977 तक रहे. इस तरह आपातकाल के समय कांग्रेस अध्यक्ष के रूप में वो कार्यरत थे. देवकांत बरुआ को ‘इंडिया इज इंदिरा, इंदिरा इज इंडिया’ टिप्पणी के लिए जाना जाता है. आपातकाल के बाद 1977 में लोकसभा चुनाव उनके कार्यकाल में हुए थे, जिसमें पार्टी को करारी मात खानी पड़ी थी. वह गांधी परिवार के वफादार थे, लेकिन बाद में कांग्रेस के विभाजन के बाद इंदिरा विरोधी गुट में शामिल हो गए थे. ऐसे में कांग्रेस की कमान उनसे लेकर कासु ब्रह्मनंद रेड्डी को सौंप दी, जो 1978 तक रहे.
पीवी नरसिम्हा राव : राजीव गांधी की हत्या के बाद पीवी नरसिम्हा राव साल 1992 में कांग्रेस के अध्यक्ष बने और 1996 तक रहे. इस दौरान पार्टी के अध्यक्ष रहने के साथ-साथ देश के प्रधानमंत्री पद पर भी रहे. राजीव गांधी का निधन हो जाने और कांग्रेस की सरकार बनने पर नरसिम्हा राव पीएम बने थे.
सीताराम केसरी : नरसिम्हा राव के बाद सीताराम केसरी साल 1996 में कांग्रेस पार्टी का अध्यक्ष बनाए गए थे और 1998 तक वो इस पद रहे. इस दौरान साल 1998 में लोकसभा चुनाव भी हुए थे, जिनमें कांग्रेस को करारी मात खानी पड़ी थी. हालांकि, इसी के बाद कांग्रेस की कमान उनसे छीन ली गई थी और सोनिया गांधी को सौंप दी गई थी.
मल्लिकार्जुन खड़गे : कांग्रेस पार्टी को 24 साल बाद गैर गांधी अध्यक्ष मिला है. 19 अक्टूबर 2022 को खड़गे कांग्रेस के नए अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे ने चुनाव में 7897 वोटों से जीत हासिल की, शशि थरूर को करीब 1000 वोट मिले थे.जीत के बाद खड़गे ने कहा था कि मजदूर का बेटा आज कांग्रेस का अध्यक्ष बना है.
नेहरू-गांधी परिवार से
कब-कौन चुना गया
नाम वर्ष
मोतीलाल नेहरू : 1919, 1928
जवाहर लाल नेहरू : 1929, 1930, 1935-38, 1951-55
इंदिरा गांधी : 1959, 1978-84
राजीव गांधी : 1984-1991
राहुल गांधी : 2018, 2019
सोनिया गाधी : 1998-2017
(2019 से कार्यकारी अध्यक्ष)
सबसे ज्यादा 22 साल अध्यक्ष रहीं सोनिया
कांग्रेस पार्टी में अब तक 88 अध्यक्ष चुने गए हैं. राहुल गांधी ने 2019 को 87वें अध्यक्ष की कुर्सी छोड़ी थी, जिसके बाद से सोनिया गांधी पार्टी की कार्यकारी अध्यक्ष (88वीं अध्यक्ष) बनीं. सोनिया गांधी करीब 22 साल से कांग्रेस अध्यक्ष हैं.
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अब आएगा रामराज्य?
अयोध्या के राममंदिर में अब ‘रामलला’ आने वाले हैं। देश-विदेश में उत्सव मनाए जा रहे हैं। पीएम मोदी 22 जनवरी को इस भव्य मंदिर का उद्घाटन करेंगे। नरेन्द्र मोदी और उनकी सरकार के प्रयासों से अयोध्या में भगवान राम विराज रहें हैं। अब उम्मीद है कि देश में जल्द ही रामराज्य भी आएगा। परंतु राम राज्य है क्या ? यह जानना बहुत जरुरी है। गोस्वामी तुलसीदास व्दारा रचित ‘रामचरितमानस के उत्तरकाण्ड में ‘रामराज्य’की कल्पना करते हुए एक आदर्श शासन व्यवस्था का प्रारूप प्रस्तुत किया गया है। ‘रामचरितमानस’में तुलसीदासजी कहते हैं –“ दैहिक दैविक भौतिक तापा। राम राज नहिं काहुहि ब्यापा
सब नर करहिं परस्पर प्रीती। चलहिं स्वधर्म निरत श्रुति नीती ” (मानस,उ.कां.२१.१)
भावार्थ:- ‘रामराज्य’में किसी को दैहिक, दैविक और भौतिक तकलीफ नहीं है। सब मनुष्य परस्पर प्रेम करते हैं और मर्यादा में रहकर अपने-अपने धर्म का पालन करते हैं। लोगों को स्वतंत्रा थी पर वे दूसरे की स्वतंत्रा छीन नहीं सकते थे। लोकतांत्रिक मूल्यों की रक्षा के लिए सब कुछ दांव पर लगा दिया जाता था, सुरक्षा, न्याय और जीने का अधिकार सभी को था। जनता सुखी, समृद्ध थी। “रामराज्य’का आदर्श आज भी अनुकरणीय है और बिल्कुल संभव है। उसका पालन पूर्णतः व्यावहारिक है। आइये, आज पूरा देश राममय है, हम श्रीराम के सिखाए आदर्शों को जानकर उन्हें व्यवहार में लाने का प्रयास करें और रामराज्य की आधारशिला रखें। हमारे रामराज्य के आदर्श के रोडमैप पर चलकर कई देशों ने अलग-अलग क्षेत्रों में रामराज्य की स्थापना की है। फिर हम क्यों नहीं कर सकते?
देश का नाम : फिनलैंड
राजधानी : हेलेंस्की
भारत की राजधानी दिल्ली से फिनलैंड मात्र 90 हजार किमी. दूर है। संयुक्त राष्ट्र ने इसे दुनिया का सबसे बेस्ट देश माना है। अब ये दुनिया की सबसे बड़ी इकोनॉमी में से एक बन गई।वर्ल्ड हैप्पीनेस रिपोर्ट 2023 में दुनिया का सबसे खुशहाल देश फिनलैंड को बताया गया है। इस लिस्ट में फिनलैंड के बाद दूसरे नंबर पर डेनमार्क और तीसरे पर आइसलैंड है। भारत 125वें पायदान पर और तुर्की 106 वें स्थान पर है।
कितनी विडंबना है कि हमारे फार्मूले से आज फिनलैंड शिक्षा के क्षेत्र में अपना परचम लहरा रहा है।इस देश ने शिक्षा के क्षेत्र में ‘रामराज्य’के मूल मंत्र ‘समानता’को अपनाया है। फिनलैंड में सभी के लिए शिक्षा मुफ्त और समान है – अमीर हो या गरीब। 99% बच्चे सरकारी स्कूलों में पढ़ रहे हैं। प्राइवेट स्कूल और टयूशन क्लास के लिए यहां कोई जगह नहीं है।
सरकारी नौकरी के लिए एक जैसी योग्यता मांगी जाती है। पूरे देश में टीचर ट्रेनिंग एक समान है। यहां बच्चों पर शिक्षा थोपी नहीं जाती। बच्चे 7 साल की उम्र में सीधे हाईस्कूल में दाखिल होते हैं। इसके लिए उन्हें कोई परीक्षा नहीं देनी होती है। जबकि भारत में बच्चा 2 से 2.5 साल की उम्र में स्कूल में एडमिशन लेता है और इसके लिए माता-पिता का इंटरव्यू लिया जाता है। फिनलैंड में स्कूल टीचर बिल्कुल एक मित्र की तरह बच्चों से पेश आते हैं. 3 वर्ष तक क्लास टीचर रहते हैं ताकि उनका स्टूडेंट से अपनेपन का रिश्ता बन सके और वे बेहतर शिक्षा दे सकें।
प्रिंसिपल, टीचर सब बराबरी से काम करते हैं, कोई भेदभाव नहीं है। आपको जानकर आश्चर्य होगा कि फिनलैंड में साल 1948 में स्कूलों में मिड-डे मिल के लिए कानून लागू किया गया था। प्रिंसिपल, टीचर , स्टूडेंट सब मिलकर एक साथ खाना खाते हैं। बच्चों के स्वास्थ्य का विशेष ध्यान रखा जाता है।
फायदे
1. कोई भी, कभी भी शिक्षा ले सकता है। क्योंकि यहां शिक्षा मुफ्त है।
2.बच्चों को अच्छा स्वास्थ्य और अच्छी शिक्षा मिलती है।
3.पढ़ाई में पिछड़े बच्चों का अच्छा भविष्य बनता है।
4.शिक्षा से स्किल्ड फौज तैयार हो रही है।
खुशी की 5 बड़ी वजहें
सुरक्षित देश
ये सबसे स्थिर और सुरक्षित देश है. यहां की कुल आबादी 55 लाख है। संगठित क्राइम तो यहां न के बराबर है। यहां की पुलिस और इंटरनेट सुरक्षा को दुनिया में दूसरे नंबर पर माना जाता है। कानून का पालन सख्ती से होता है।
आर्थिक सुरक्षा
यहां हर नागरिक को आर्थिक सुरक्षा, अधिकार और सुविधाएं हासिल हैं। उन्हें कभी ये नहीं सोचना पड़ता कि उनकी नौकरी चली गई तो क्या होगा या फिर अगर वो बूढ़े हो गए और उनके पास धन नहीं है तो क्या होगा या कोई दुर्घटना या तबीयत खराब हो जाए तो इलाज कैसे होगा? ये सारा जिम्मा सरकार उठाती है।
सबसे कम भ्रष्टाचार
यहां भ्रष्टाचार सबसे कम है। कहा जाता है कि यहां का समाज सबसे प्रोग्रेसिव है।
कोई बेघर नहीं
हालांकि यहां की जीडीपी कम है। ये दुनिया का अकेला देश होगा, जहां कोई बेघर नहीं है। अर्थव्यवस्था बहुत मजबूत है।
शुद्ध हवा और शुद्ध पानी
शुद्ध हवा के मामले में ये दुनिया के तीसरे नंबर का देश है। वर्ल्ड हेल्थ आर्गनाइजेशन की रिपोर्ट में ये बात कही गई है। वहीं पानी के मामले में दुनिया में बेहतरीन स्थिति में है। इसे झीलों का देश भी कहते हैं।वहीं यहां काफी बडी मात्रा में जंगल हैं।
बेहतरीन शिक्षा व्यवस्था
यहां की शिक्षा व्यवस्था की मिसालें पूरी दुनिया में दी जाती हैं। ये दुनिया के सबसे साक्षर देशों में भी है।
फिनलैंड की आबादी सिर्फ 58 लाख है। इनके लिए दो ही सहारे हैं शिक्षा और जंगल। इन्होंने शिक्षा पर फोकस किया है और इस क्षेत्र में रामराज्य लाए। यही वजह है कि अकादमिक या व्यावसायिक उच्च विद्यालयों से 93 प्रतिशत फिन स्नातक हैं।फिनलैंड के 66 प्रततिशत स्टूडेंट्स हायर एजुकेशन हासिल करते हैं जो यूरोपीय संघ में सबसे अधिक है। जरूरत है हमें फिनलैंड से सीखने की ताकि आने वाले बच्चे सुखद भविष्य का सपना देख सकें। आखिर फिनलैंड हमारे ही कांसैप्ट पर काम कर रहा है। फिर हम क्यों नहीं कर सकते? आ सकता है भारत में भी ‘रामराज्य’।
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कौन बनेगा सीएम
भोपाल.मध्य प्रदेश विधानसभा चुनाव में बीजेपी ने ऐतिहासिक विजय प्राप्त की है। प्रदेश में शिवराज सिंह चौहान के नेतृत्व में बीजेपी की सरकार चल रही है, लेकिन बीजेपी की तीन राज्यों में जीत के बाद भी अभी तक सीएम के नाम का ऐलान नहीं हुआ है। इस बीच मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने कहा कि “मेरे जेहन में एक ही मिशन है 2029। उन्होंने कहा, मैं वही करूगा, जो पार्टी कहेगी।” चौहान ने कहा कि यह काम मेरा नहीं है, मेरी पार्टी का है। मैं केवल अपने काम करने में रूचि रखता हूं। बाकी चिंता पार्टी को करनी है। वह पार्टी करेगी। जो काम जिसका है, वह करे, मैं वह चिंता क्यों करूं? ”
मोदी के गले में 29 फूलों की माला पहनाना है
शिवराज सिंह चौहान ने कहा, “मैं भाजपा का कार्यकर्ता हूं. एक बड़े मिशन के लिए काम करना है।जनसंघ के निर्माताओं ने जो सोचा था, उसे पीएम मोदी पूरा कर रहे हैं।”सीएम ने कहा, “विधानसभा चुनाव में विजय के बाद एक मात्र लक्ष्य लोकसभा चुनाव जीतना है, क्योंकि मैं मानता हूं कि देश के लिए पीएम मोदी आवश्यक हैं। अगले लोकसभा चुनाव में एमपी की सभी 29 सीटें जीतेंगे। मध्य प्रदेश से 29 सीटें जीत कर पीएम मोदी के गले में 29 फूलों का माला पहनाना है। मोदी प्रधामंत्री जी बनेंगे, इसलिए हमारा मिशन 29 आरंभ हो गया है।”
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सत्ता का सेमीफाइनल हार चुके हैं खड़गे
कांग्रेस में भूपेश बघेल, अशोक गहलोत और कमलनाथ जैसे अहंकारी और पार्टी हाईकमान के निर्देशों को ठेंगा दिखाने वाले नेताओं को रास्ता दिखाने का वक्त है।खड़गे को मालूम होना चाहिए कि वे सत्ता का सेमीफाइनल हार चुके हैं। अगर क्रिकेट की तरह सियासत में भी नॉकआउट होता तो कांग्रेस 2024 के सीन से गायब थी।ये वही नेता हैं, जिन्होंने पार्टी नेतृत्व को लगातार झांसा दिया कि हम जीत रहे हैं और आज INDIA को कमज़ोर कर दिया।
असल में जीते तो सुनील कोणुगोलू हैं, जिनकी रणनीति ने 3 राज्यों में पार्टी की सरकार बना दी।उसी सुनील को नकुल नाथ के भोपाल वाले मकान से खदेड़ दिया गया, क्योंकि कमलनाथ बागेश्वर बाबा के पैरों में गिरना चाहते थे।
खड़गे को यह भी पता रहा होगा कि भूपेश बघेल ने किस तरह मंत्रियों के पर काटे। किस तरह विधायकों की ताकत अफसरों से कम करवाई गई। और यह भी कि किस तरह अशोक गहलोत सचिन पायलट को नीचा दिखाने के लिए यह कहते रहे कि मैं नहीं, कुर्सी मुझसे चिपकी है। आज कुर्सी नहीं है। घर बैठें। कांग्रेस नेतृत्व चुप रहा, क्योंकि यही नेता पार्टी और कार्यकर्ताओं के लिए फंड जुगाड़ रहे थे। कांग्रेस संगठन को सख्त अनुशासन की जरूरत है, बीजेपी की तरह।अगर कांग्रेस 2024 का फाइनल नहीं जीत पाती है, तो समझ ले कि आगे कभी जीत नहीं पाएगी।
– सौमित्र रॉय , वरिष्ठ पत्रकार.
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