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नवरात्रि एक आयुर्वेदिक त्योहार भी है

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गोविंदा पंडया.हमारे आयुर्वेद के ज्ञाता ऋषि मुनियों ने कुछ औषधियों को इस ऋतु में विशेष सेवन हेतु बताया था।जिससे प्रत्येक दिन हम सभी उसका सेवन कर शक्ति के रूप में शारीरिक व मानसिक क्षमता को बढ़ाकर हम शक्तिवान, ऊर्जावान बलवान व विद्वान बन सकें। नौ तरह की वह दिव्यगुणयुक्त महा औषधियां निस्संदेह बहुत ही प्रभावशाली व रोग प्रतिरोधक क्षमता को बढ़ाने के साथ साथ हम ताउम्र बदलते मौसम की प्रतिकूल परिस्थितियों में भी स्वयं को ढालने में सक्षम हो और निरोगी बन दीर्घायु प्राप्त करे।

नवदुर्गा  के अमूर्त रूप के रूपक औषधि जिनका हमें शीतकाल में सेवन करना चाहिए

1  हरड़ 2 ब्राह्मी 3 चन्दसूर 4 कूष्मांडा 5 अलसी 6 मोईपा या माचिका 7 नागदान 8 तुलसी 9 शतावरी

1. प्रथम शैलपुत्री यानि हरड़ कई प्रकार की समस्याओं में काम आने वाली औषधि हरड़, हिमावती है यह आयुर्वेद की प्रधान औषधि है, जो सात प्रकार की होती है।

2.द्वितीय ब्रह्मचारिणी यानि ब्राह्मी –  यह आयु और स्मरण शक्ति को बढ़ाने वाली, रूधिर विकारों का नाश करने वाली और स्वर को मधुर करने वाली है। इसलिए ब्राह्मी को सरस्वती भी कहा जाता है।यह मन व मस्तिष्क में शक्ति प्रदान करती है और गैस व मूत्र संबंधी रोगों की प्रमुख दवा है। यह मूत्र द्वारा रक्त विकारों को बाहर निकालने में समर्थ औषधि है।

3. तृतीय चंद्रघंटा यानि चन्दुसूर –  चंद्रघंटा, इसे चन्दुसूर या चमसूर कहा गया है। यह एक ऐसा पौधा है जो धनिये के समान है। इस पौधे की पत्तियों की सब्जी बनाई जाती है, जो लाभदायक होती है। यह औषधि मोटापा दूर करने में लाभप्रद है, इसलिए इसे चर्महन्ती भी कहते हैं। शक्ति को बढ़ाने वाली, हृदय रोग को ठीक करने वाली चंद्रिका औषधि है।

4. चतुर्थ कुष्माण्डा यानि पेठा –इस औषधि से पेठा मिठाई बनती है, इसलिए इस रूप को पेठा कहते हैं। इसे कुम्हड़ा भी कहते हैं जो पुष्टिकारक, वीर्यवर्धक व रक्त के विकार को ठीक कर पेट को साफ करने में सहायक है। मानसिक रूप से कमजोर व्यक्ति के लिए यह अमृत समान है। यह शरीर के समस्त दोषों को दूर कर हृदय रोग को ठीक करता है। कुम्हड़ा रक्त पित्त एवं गैस को दूर करता है।

5. पंचम स्कंदमाता यानि अलसी- यह औषधि के रूप में अलसी में विद्यमान हैं। यह वात, पित्त, कफ, रोगों की नाशक औषधि है। अलसी नीलपुष्पी पावर्तती स्यादुमा क्षुमा।अलसी मधुरा तिक्ता स्त्रिग्धापाके कदुर्गरु:।।उष्णा दृष शुकवातन्धी कफ पित्त विनाशिनी।

6.  षष्ठम कात्यायनी यानि मोइया – इसे आयुर्वेद में कई नामों से जाना जाता है जैसे अम्बा, अम्बालिका, अम्बिका। इसके अलावा इसे मोइया अर्थात माचिका भी कहते हैं। यह कफ, पित्त, अधिक विकार व कंठ के रोग का नाश करती है।

7. सप्तम कालरात्रि यानि नागदौन – यह नागदौन औषधि के रूप में जानी जाती है। सभी प्रकार के रोगों की नाशक सर्वत्र विजय दिलाने वाली मन एवं मस्तिष्क के समस्त विकारों को दूर करने वाली औषधि है/ यह सुख देने वाली और सभी विषों का नाश करने वाली औषधि है।

8.  तुलसी – तुलसी सात प्रकार की होती है- सफेद तुलसी, काली तुलसी, मरुता, दवना, कुढेरक, अर्जक और षटपत्र। ये सभी प्रकार की तुलसी रक्त को साफ करती है व हृदय रोग का नाश करती है। तुलसी सुरसा ग्राम्या सुलभा बहुमंजरी।अपेतराक्षसी महागौरी शूलघ्नी देवदुन्दुभि: तुलसी कटुका तिक्ता हुध उष्णाहाहपित्तकृत् । मरुदनिप्रदो हध तीक्षणाष्ण: पित्तलो लघु:।

9. नवम शतावरी – जिसे नारायणी या शतावरी कहते हैं। शतावरी बुद्धि बल व वीर्य के लिए उत्तम औषधि है। यह रक्त विकार औरं वात पित्त शोध नाशक और हृदय को बल देने वाली महाऔषधि है। सिद्धिदात्री का जो मनुष्य नियमपूर्वक सेवन करता है। उसके सभी कष्ट स्वयं ही दूर हो जाते हैं।

इस आयुर्वेद की भाषा में नौ औषधि के रूप में मनुष्य की प्रत्येक बीमारी को ठीक कर रक्त का संचालन उचित व साफ कर मनुष्य को स्वस्थ करतीं है।

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हनुमान जयंती पर राशि के अनुसार करें ये उपाय

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बदल जाएगी किस्मत

मेष और वृश्चिक : इस  राशि के जातक हनुमान अष्टक का पाठ करें.हनुमान मंदिर जाकर बूंदी का प्रसाद बांटकर आयें.

वृषभ और तुला :  इस राशि के जातक मंदिर जाकर सुंदरकांड का पाठ करें और बंदरों कुछ मीठा खिलायें. ऐसा करने से इनका शुक्र ग्रह बलवान हो जायेगा.

मिथुन और कन्या : इन दोनों राशियों के लोग हनुमान जयंती पर अरण्य कांड का पाठ करें और साथ ही बजरंग बली को घी दीपक जलाकर पान का बीड़ा लौंग लगाकर चढ़ाएं. इससे उनका बुध ग्रह मजबूत होगा.

कर्क : राशि के स्वामी चंद्र देव हैं इसलिए इस राशि के जातक हनुमान जी को एक चांदी की गदा चढ़ाएं और उसे अपने गले में धारण करें. हनुमान चालीसा का पाठ करें. इससे उनका चंद्रमा की प्रबल होगा.

सिंह: इस राशि के जातक मंदिर में जाकर मीठे पकवानों का दान करें.वहीं बैठकर बालकांड का पाठ करें. ऐसा करने से उनके ग्रह के स्वामी सूर्य भी प्रसन्न हो जायेंगे.

धनु और मीन : इस राशि के जातकों के स्वामी बृहस्पति हैं उन्हें बल देने के लिए अयोध्या कांड का पाठ करें. और हनुमान जी को पीले फूल ,फल और पीली मिठाई का भोग लगायें.

मकर और कुंभ :मकर और कुंभ राशि के जातक रामचरीतमानस का पाठ करें. एक लोटे में काली उड़द की दाल बजरंग बली को अर्पित करें और बाद में उसे जल प्रवाहित करें.ऐसा करने से शनि ग्रह की भी कृपा आप पर होगी.

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विट्ठल,विट्ठला….हरी ॐ

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आज देश में आषाढ़ी एकादशी या देवशयनी एकादशी मनाई जा रही है. इसे हिंदू कैलेंडर के आषाढ़ महीने के दौरान मनाया जाता है. यह चार महीने की अवधि के लिए भगवान विष्णु (भगवान विट्ठल) की शेषनाग पर शयन की शुरुआत का प्रतीक है जिसे चातुर्मास भी कहा जाता है.

महाराष्ट्र में आषाढ़ी एकादशी का विशेष महत्व है. पुणे के समीप देहु और आलंदी से पंढरपुर के प्रसिद्ध विठोबा मंदिर तक पंढरपुर यात्रा (वारी) निकाली जाती है जो  हजारों लोगों और तीर्थयात्रियों को आकर्षित करती है. जिन्हें वारकरी कहा जाता है.पंढरपुर यात्रा विठोबा मंदिर की तीर्थयात्रा है, जिसे विट्ठल रुक्मिणी मंदिर के नाम से भी जाना जाता है, जो भगवान कृष्ण को समर्पित है.

पंढरपुर आषाढ़ी एकादशी वारी यात्रा 700 वर्षों से चल रही है. यह यात्रा पुणे जिले के देहू में संत तुकाराम मंदिर से शुरू होती है. वारकरी या तीर्थयात्री तुकाराम महाराज पालखी जुलूस का अनुसरण करते हैं. इस मुख्य जुलूस में पुणे के पास आलंदी से संत ज्ञानेश्वर पालखी शामिल होते हैं. रास्ते में अन्य शहरों और गांवों से कई अन्य पालकियां यात्रा में शामिल होती हैं.

भक्तिपूर्ण उत्सव

इस दिन भक्तगण संत ज्ञानेश्वर और तुकाराम के भजन सुनते हैं. दिन भर  मंदिर में भजन मंडलियां भजन गाती हैं. एकादशी के दिन मंदिर में लगभग छह लाख श्रद्धालु आने की उम्मीद है. सुबह 4 बजे भगवान का महाभिषेक हुआ जिसके बाद मंदिर खुला रहेगा.406 साल पुराने म्हात्रे मंदिर की प्राण प्रतिष्ठा संत तुकाराम ने करवाई थी. मंदिर की मूर्तियां चंद्रभागा नदी में पाई गई थीं.

धरती पर विराजमान हैं ईश्वर

भगवान विट्ठल, श्रीकृष्ण ही हैं। इसके बारे में एक पौराणिक कहानी है। 6वीं सदी के संत पुंडलिक, माता-पिता के परम भक्त थे। एक दिन वे अपने माता-पिता के पैर दबा रहे थे कि श्रीकृष्ण रुक्मिणी के साथ वहां प्रकट हो गए। वे पैर दबाने में इतने लीन थे कि अपने इष्टदेव की ओर उनका ध्यान ही नहीं गया। तब प्रभु ने उन्हें स्नेह से पुकार कर कहा, ‘पुंडलिक, हम तुम्हारा आतिथ्य ग्रहण करने आए हैं।’ पुंडलिक ने जब उस तरफ देखा, तो भगवान के दर्शन हुए। उन्होंने कहा कि मेरे पिताजी शयन कर रहे हैं, इसलिए आप इस ईंट पर खड़े होकर प्रतीक्षा कीजिए और वे पुन: पैर दबाने में लीन हो गए।

भगवान पुंडलिक की सेवा और शुद्ध भाव देखकर प्रसन्न हो गए और कमर पर दोनों हाथ धरकर और पैरों को जोड़कर ईंटों पर खड़े हो गए। कुछ देर बाद पुंडलिक ने फिर भगवान से कह दिया कि आप इसी मुद्रा में थोड़ी देर और इंतजार करें।भगवान को पुंडलिक द्वारा दिए गए स्थान से भी बहुत प्रेम हो गया। उनकी कृपा से पुंडलिक को अपने माता-पिता के साथ ही ईश्वर से साक्षात्कार हो गया। ईंट पर खड़े होने के कारण श्री विट्ठल के विग्रह रूप में भगवान आज भी धरती पर विराजमान हैं। यही स्थान पुंडलिकपुर या अपभ्रंश रूप में पंढरपुर कहलाया।

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युवाओं के चरित्र निर्माण में सहायक है हनुमान कथा

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श्री आयुर्वेद महाविद्यालय में हनुमान कथा का समापन

नागपुर. उत्तम चरित्र मानव को मानव बनाता है। चरित्र निर्माण में हनुमानजी ने उच्च मापदंड स्थापित किये है। रामकाज करना हनुमानजी का ध्येय था। उसी ध्येय पर अड़िग रहते हुए उन्होंने जीवन को सफल बनाया।  अपने संपर्क में आये हुए व्यक्तियों जैसे – सुग्रीव, विभीषण को भी श्रीराम  से मिलाया और सफल बनाया। अपने शिक्षा अध्ययन के कार्य को ध्येयपूर्वक करने से विद्यार्थी हनुमानजी की तरह सफल एवं उत्तम चरित्रवाले युवा बन सकते हैं।

हनुमान कथा के उपलक्ष्य में हनुमान जयंती के अवसर पर प्रातः शोभायात्रा एवं प्रभातफेरी का कीर्तन, ढोल ताशे के साथ आयोजन किया गया। इसके पश्चात् हवन एवं सामूहिक हनुमान चालीसा का पाठ किया गया।  इस अवसर पर कथा प्रेमियों के लिए महाप्रसाद रखा गया था।  कथा के प्रारंभ में व्यासपीठ का पूजन डॉ. लालचंद जैस्वाल द्वारा सम्पन्न हुआ। महाआरती में सक्करदरा पुलिस स्टेशन के वरिष्ठ पुलिस निरीक्षक श्री धनंजय पाटील प्रमुख रूप से उपस्थित थे। कार्यक्रम का कुशल संचालन डॉ. गायत्री व्यास एवं आभार प्रदर्शन डॉ. रामकृष्ण छांगाणी ने किया।

 हनुमान कथा के सफलतार्थ  चोखानी जी, चंद्रशेखर शर्मा, संजय जोशी,  डॉ. संतोष शर्मा, नथमल अग्रवाल, डॉ. अर्चना दाचेवार, डॉ. मृत्युंजय शर्मा, डॉ. बृजेश मिश्रा, डॉ. हरीष पुरोहित, डॉ. शिल्पा वराडे, श्री हरीओम दुबे, डॉ. विनोद चौधरी, डॉ. देवयानी ठोकळ, डॉ. अश्विन निकम, डॉ. उदय पावडे, डॉ. अर्चना बेलगे, डॉ. सुरेखा लांडगे, श्री अंजनकर, डॉ. सुरेश खंडेलवाल, डॉ. जगमोहन राठी, डॉ. रचना रामटेके, डॉ. स्नेहविभा मिश्रा,  महाविद्यालय प्रतिनिधि डॉ. आदित्य हटवार, फड ने सहयोग दिया। 

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