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‘पंचवटी’ से हुआ मेरे लेखकीय जीवन का आरंभ

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 र्ष 1976 में मैं बीए प्रथम वर्ष की परीक्षा में अनुतिर्ण  हुआ तो पढ़ाई पर कुछ विराम लगा । मैं रोजगार की तलाश में लग गया। परंतु मुझे कक्षा 9 ,10, 11 में पढ़ीं कविताएं और साहित्य बराबर याद रहे। राष्ट्रकवि मैथिलीशरण गुप्त की पंचवटी तो मुझे आज भी कंठस्थ है। कवि सेनापति और पद्माकर के कविताएं मुझे बहुत प्रिय थीं। यही कारण है कि मैं जब पैदल जाता था तो रास्ते में पद्माकर सेनापति और पंचवटी की पंक्तियां बोलते हुए चलता था कुछ ही दिन हुए की अब मेरा मस्तिष्क पद्माकर की कविता बगरों बसंत बगरू बसंत है के तर्ज पर कुछ मनगढ़ंत पंक्तियां गुनगुनाने लगा। मेरे पिताजी ने मुझे एक डायरी दी थी उस डायरी पर उन पंक्तियों को लिखने लगा हालांकि मुझे स्वयं को वह पंक्तियां अच्छी लगती थी और प्रतिदिन ही उन पंक्तियों में कुछ पंक्तियां जुड़ती रही।  किंतु वे निरर्थक और निराकार ही थी।

 मेरे दो मित्र उस समय शायराना अंदाज में रहते थे पहले का नाम आनंद राय और दूसरे का नाम कमल नयन पांडे था । यह दोनों मित्र की संगत में मैं कुछ और पंक्तियां , तुकबंदी में बोलते और घर में आकर डायरी में लिपिबद्ध करता। प्रथम आनंद राय आगे चलकर फिल्म व्यवसाय में चले गये, जबकि कमल नयन जी पूर्णरूपेण कृषि कार्य हेतु इलाहाबाद स्थित उनके पैतृक निवास ग्राम बालक मऊ में बस गए।

कृष्णदेव चतुर्वेदी,भोजपुरी कवि

मैं भोपाल में ही पिताजी के साथ रहते हुए कमोवेश  रोजगार की तलाश में लगा रहा तथा समय-समय पर विभिन्न विभागों कार्यालयों में कार्य करते हुए आगे बढ़ रहा था। इसी बीच भोपाल के जहांगीराबाद के बरखेड़ी मोहल्ले में संचालित प्राइवेट स्कूल में शिक्षण कार्य करने लगा । यहां मेरी मुलाकात संजय अंत्रीवाले जी से हुई। संजय  भोपाल आकाशवाणी में संचालित युवावाणी कार्यक्रम में उद्घोषक का कार्य भी करते थे। एक दिन अनायास ही उन्होंने मुझसे कहा कि आप एक मुक्तक लिखिए जो 6 पंक्तियों की हो तथा उसके अंतिम पंक्ति के अंत में गजरा शब्द आना चाहिए। मैंने उन्हें तीन-चार मुक्तक लिखकर दिए। जिसमें से एक मुक्तक उन्होंने पोस्टकार्ड पर लिखकर दिल्ली से प्रकाशित होने वाली मासिक पत्रिका ‘कादंबिनी’ को प्रेषित कर दिया! यह मुक्तक कादंबिनी (सितंबर 1986) के अंक  में तृतीय पुरस्कार के साथ प्रकाशित भी हो गई जिसकी पुरस्कार राशि मुझे मनीआर्डर द्वारा प्राप्त हो गई। अब मैंने संजय  को यह बात बताई तो हम लोग सितंबर 1986 की कादंबिनी की खोज में जुटे। ढूंढते- ढूंढते भोपाल के न्यू मार्केट के एक बड़ी पुस्तक विक्रेता के यहां यह अंक मिल गया। हमने बड़ी उत्सुकता से देखा तो उसमें मेरे द्वारा लिखा गया मुक्तक छपा था जो इस प्रकार है –

       तोड़ लिया माली ने मुझको

      अंतर   ज्वाल   मिटाने   को  

      गूंथ  दिया  धागे  में  मुझको   

      युग का  मन ललचा  ने  को 

      हुआ  कलंकित  मेरा जीवन

      बनकर   केशों   का   गजरा।

    हम दोनों मित्रों को बहुत खुशी हुई । मेरे इस गुण को उन्होंने बहुत सराहा। इसी समय मैं शिक्षा विभाग में शिक्षक के रूप में चयनित कर लिया गया तथा संजय  मध्य प्रदेश विद्युत मंडल में चयनित होकर अन्यत्र चले गए , किंतु वे मेरे मन को लेखन के प्रति जागृत कर गए। मेरे पास बिजनौर से प्रकाशित एक पत्रिका “अचिंत्य ” की नमूना प्रति आई। मैंने अचिंत्य शीर्षक से ही एक कविता लिखी और प्रेषित कर दी। वह कविता भी उसमें छपी और मेरा रुझान कविताएं लिखकर छपवाने की ओर बढ़ता गया मैं कविता लिखता और कई पत्र-पत्रिकाओं में  भेज देता। मेरी कविताएं हर उस पत्रिका में प्रकाशित हो जाती जिसमें मैं भेजता।

 यह सिलसिला चल पड़ा और मैं धीरे- धीरे कवि के रूप में जाना जाने लगा। अब मैं भोपाल के हिंदी भवन से जुड़ चुका था। साथ ही भोपाल की प्रतिष्ठित साहित्यिक संस्था कला मंदिर का सदस्य बन गया। नियमित काव्य गोष्ठीयों में सहभागिता करने लगा था। यहां पर मेरी बृजभाषी हिंदी के प्रख्यात कवि हुकुम पाल सिंह विकल से भेंट हुई। इन्होंने मुझे सराहा और कहा कि आपके पास शब्दों और विषयों की कमी नहीं है ।

 आगे चलकर जब राष्ट्रभाषा प्रचार समिति, वर्धा ने पहले हम 40 एवं बाद में हम भारतीय अभियान की शुरुआत की तो मैं प्रसिद्ध कवि डॉक्टर कमलेश शर्मा, भोपाल ( अभियान के प्रदेश प्रभारी ) से जुड़ गया तथा हम भारतीय शिविरों का आयोजन हेतु कार्य करने लगा।शिक्षण काल के दौरान मेरी मुलाकात शिक्षक आठ्या से हुई। वे तरुण भारती शीर्षक से एक मासिक पत्रिका प्रकाशित करते थे जिसमें उन्होंने मुझे स्थान दिया और सहायक संपादन का कार्य भी सौंपा । यह पत्रिका धीरे- धीरे चल निकली ।  आठ्या  आज भी “शिल्प पक्ष साप्ताहिक एवं “चडार संवाद” मासिक पत्रिका प्रकाशित कर रहे हैं।

 धीरे – धीरे मैं देश के दर्जनभर प्रांतों से निकलने वाली पत्र-पत्रिकाओं में छपने लगा। मैंने अपनी कविताओं को सहेजने हेतु भी कुछ कार्य किया जिसमें सबसे पहले पानी बचाओ अभियान पर आधारित पुस्तिका चीखती नदी, शिक्षा योजना धतूरिया , “हम भारतीय शिविर” सार संग्रह, “कब आएगी नानी” कथा संग्रह, “अपनी डफली अपना राग”व्यंग कविता संग्रह,”शब्द आपके बन गए शिक्षक”कविता संग्रह, “जाग हो बलमुआ” भोजपुरी गीत संग्रह आदि प्रकाशित हो चुके हैं। वर्तमान में पांच पांडुलिपियां तैयार हैं जो जल्द ही आप सबके सामने होंगी।

 ( राजीव कुमार झा से बातचीत पर आधारित)
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बैठे-ठाले

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और कितने बदलापुर सरकार ?

एनसीआरबी रिपोर्ट के मुताबिक भारत में हर घंटे 3 महिलाएं रेप का शिकार होती हैं, यानी हर 20 मिनट में 1. रेप के मामलों में 100 में से 27 आरोपियों को ही सजा होती है, बाकी बरी हो जाते हैं.ये आंकड़े बताते हैं कि सख्त कानून होने के बावजूद हमारे देश में रेप के मामलों में न तो कमी आ रही है और न ही सजा की दर यानी कन्विक्शन रेट बढ़ रहा है.महिलाओं के खिलाफ अपराध के मामलों का जिक्र इसलिए, क्योंकि हाल-फिलहाल में रेप के बढ़ते मामलों ने देश को हिलाकर रख दिया है. कोलकाता में रेजिडेंट डॉक्टर की रेप और उसके बाद हत्या का मामला, बदलापुर कांड और एनकाउंटर चर्चा में बना हुआ है. रेप के मामलों में फांसी की सजा का प्रावधान होने के बावजूद 24 साल में पांच दुष्कर्मियों को ही फांसी की सजा मिली है. 2004 में धनंजय चटर्जी को 1990 के बलात्कार के मामले में फांसी दी गई थी. जबकि, मार्च 2020 में निर्भया के चार दोषियों- मुकेश, विनय, पवन और अक्षय को तिहाड़ जेल में फांसी दी गई थी. यही वजद है कि ऐसे अपराधियों में कानून का खौफ नहीं है. तभी तो बदलापुर एनकाउंटर के बाद भी महाराष्ट्र में लगभग हर दिन रेप की एक घटना सामने आ रही है. सबसे दुख की बात ये है कि मासूमों को शिकार बनाया जा रहा है. सवाल यह है कि सरकार और कितने बदलापुर का इंतजार कर रही है? राज्य में शक्ति लॉ कानून क्यों नहीं लागू करती?

 

शक्ति आपराधिक कानून (महाराष्ट्र संशोधन) विधेयक, 2020 (शक्ति विधेयक) दिसंबर 2020 में पेश किया गया था, पास भी हो गया. लेकिन सरकार ने इसे लटकाकर रखा है क्यों? चुनाव के इस माहौल में लाड़की बहनें क्यों नहीं इस कानून को लागू करने की मांग करती हैं? इस विधेयक में महिलाओं और बच्चों के विरुद्ध बलात्कार जैसे कुछ अपराधों के लिए मृत्युदंड का प्रावधान किया गया है. आंध्रप्रदेश में ऐसा ही कानून लागू किया गया है. आज इस विधेयक को राज्य में लागू करने की सबसे ज्यादा जरूरत है.

महाराष्ट्र  में बढ़ रही है संपन्नता

महाराष्ट्र के आर्थिक हालात तेजी से सुधर रहें हैं. देश में बढ़ते निवेश का असर राज्य में देखने को मिल रहा है. भारतीय रिजर्व बैंक की सालाना रिपोर्ट के मुताबिक यहां बीते 12 साल में प्रति व्यक्ति जीडीपी 64.5 बढ़कर 1.63 लाख रुपए हो गई है. प्रति व्यक्ति जीडीपी यानी प्रति व्यक्ति शुध्द राज्य उत्पादन. यह बताती है कि किसी राज्य में संपन्नता का स्तर कितना है? ग्रोथ या निवेश उन्हीं राज्यों में ज्यादा हो रहा है, जो पहले से बहुत अमीर हैं. इस मामले में ओडिशा ने हालात तेजी से सुधारे हैं.

 

बिहार आज भी 12 साल पुरानी स्थिति में है. यहां  प्रति व्यक्ति जीडीपी सिर्फ 47 ही बढ़ी है. जो कि देश में सबसे कम है. 18 राज्यों में कनार्टक सबसे अमीर है. हरियाणा दूसरे और तेलंगाना तीसरे नंबर पर है. महाराष्ट्र का नंबर 5 वां है. यानी हम भी संपन्नता की दिशा में तेजी से आगे बढ़ रहें हैं. अच्छी बात है.

व्यापारियों का दर्द

अब व्यापारी भी सरकारी योजनाओं के खिलाफ आवाज उठाने लगे हैं. क्योंकि वे मानते हैं कि सरकार का ध्यान टैक्स पेयर व्यापारी की तरफ़ से हटकर वोट बैंक की ओर ज़्यादा हो गया है जिससे उनकी समस्याएं बढ़ती जा रही है. टैक्सपेयर और व्यापारियों द्वारा भरे गए टैक्स से मुफ़्त रेवड़ियां बांटी जा रही है यानि मुफ़्त की राहत ज़्यादा बढ़ गई है जो सिरदर्द बनती जा रही है. इधर जीएसटी  में सरकार रोज़ नए – नए प्रावधान ला रही है जिससे व्यापारी का ध्यान व्यापार से हटकर इन समस्याओं की ओर ज़्यादा जा रहा है. अब इनकी मांग है कि सरकार आयुष्मान भारत की तरह आयुष्मान व्यापारी योजना भी लागू करे. इन मांगों को लेकर  व्यापारी डीसीएम फडणवीस से मिले भी है. आश्वासन तो मिला है, आगे देखिए क्या होता है?

-डॉ. एस. शर्मा

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पितृ पक्ष आज से शुरु

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ऐसे मिलेगा पितरों का आशीर्वाद

क्या करें और क्या ना करें

नागपुर,वेबडेस्क, महाराष्ट्र खबर 24.पितृ पक्ष में बड़ी संख्या में लोग अपने पितृगणों की आत्मा की शांति और मोक्ष प्राप्ति के लिए श्राद्ध और तर्पण करते रहे हैं. आज से पितृ पक्ष की शुरुआत हो गई  है. इस दौरान अपने पितरों के सम्मान में उन्हें याद करते हुए उनके नाम का तर्पण करना और भोग लगाना का विशेष महत्त्व है. आचार्य गोविन्द तिवारी बताते है कि, पितृ पक्ष वह समय होता है जब पितृगण धरती पर आते हैं और अपने वंशजों से तर्पण और पिंडदान की आशा रखते हैं. इस दौरान विधिपूर्वक श्राद्ध करने से पितृगण प्रसन्न होते हैं और परिवार पर सुख-समृद्धि का आशीर्वाद देते हैं.

कुश,तिल और जौ का विशेष महत्व

पितृ पक्ष में कुश, तिल और जौ का विशेष महत्व है.श्राद्ध और तर्पण में इन तीनों का उपयोग आवश्यक है. काले तिल भगवान विष्णु को अत्यंत प्रिय माने जाते हैं और इन्हें देव अन्न कहा जाता है. इसलिए पितरों को भी ये प्रिय है. कुशा का भी धार्मिक और पौराणिक महत्व है. इसका उपयोग तर्पण में इसलिए किया जाता है क्योंकि पितरों को कुश से अर्पित किया गया जल अमृत तत्व की तरह मिलता है. जिससे हमारे पितृ तृप्त होते हैं.

पितृपक्ष में श्राद्ध की तिथियां

पूर्णिमा श्राद्ध 17 सितंबर 2024 मंगलवार
प्रतिपदा श्राद्ध 18 सितंबर 2024 बुधवार
द्वितीया श्राद्ध 19 सितंबर 2024 गुरुवार
तृतीया श्राद्ध 20 सितंबर 2024 शुक्रवार
चौथा श्राद्ध 21 सितंबर 2024 शनिवार
पांचवां श्राद्ध 22 सितंबर 2024 रविवार
छठा श्राद्ध 23 सितंबर 2024 सोमवार
सातवां श्राद्ध 24 सितंबर 2024 मंगलवार
आठवां श्राद्ध 25 सितंबर 2024 बुधवार
नौवां श्राद्ध 26 सितंबर 2024 गुरुवार
दसवां श्राद्ध 27 सितंबर 2024 शुक्रवार
एकादशी श्राद्ध 28 सितंबर 2024 शनिवार
द्वादशी श्राद्ध 29 सितंबर 2024 रविवार
त्रयोदशी श्राद्ध 30 सितंबर 2024 सोमवार
चतुर्दशी श्राद्ध 1 अक्तूबर 2024 मंगलवार
सर्व पितृ अमावस्या 2 अक्तूबर 2024 बुधवार

पितृ पक्ष में बरतें सावधानियां

  1. इस अवधि में दोनों वेला में स्नान करके पितरों को याद करना चाहिए
  2. कुतुप वेला में पितरों को तर्पण दें और इसी वेला में तर्पण का विशेष महत्व भी होता है.
  3. तर्पण में कुश और काले तिल का विशेष महत्व है. कुश और काले तिल के साथ तर्पण करना अद्भुत परिणाम देता है.
  4. जो कोई भी पितृ पक्ष का पालन करता है उसे इस अवधि में सात्विक भोजन ग्रहण करना चाहिए.
  5. पितरों को हल्कि सुगंध वाले सफेद फूल ही अर्पित करें. तीखी सुगंध वाले फूल वर्जिक हैं.
  6. इसके अलावा, दक्षिण दिशा की ओर मुख करके पितरों का तर्पण और पिंड दान करें.
  7. पितृ पक्ष में हर रोज गीता का पाठ जरूर करें.
  8. वहीं, कर्ज लेकर या दबाव में कभी भी श्राद्ध कर्म नहीं करना चाहिए.

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अब आएगा रामराज्य?

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अयोध्या के राममंदिर में अब ‘रामलला’ आने वाले हैं। देश-विदेश में उत्सव मनाए जा रहे हैं। पीएम मोदी 22 जनवरी को इस भव्य मंदिर का उद्घाटन करेंगे। नरेन्द्र मोदी और उनकी सरकार के प्रयासों से अयोध्या में भगवान राम विराज रहें हैं। अब उम्मीद है कि देश में जल्द ही रामराज्य भी आएगा। परंतु राम राज्य है क्या ? यह जानना बहुत जरुरी है। गोस्वामी तुलसीदास व्दारा रचित ‘रामचरितमानस के उत्तरकाण्ड में ‘रामराज्य’की कल्पना करते हुए एक आदर्श शासन व्यवस्था का प्रारूप प्रस्तुत किया गया है। ‘रामचरितमानस’में  तुलसीदासजी कहते हैं –“ दैहिक दैविक भौतिक तापा। राम राज नहिं काहुहि ब्यापा

सब नर करहिं परस्पर प्रीती। चलहिं स्वधर्म निरत श्रुति नीती ” (मानस,उ.कां.२१.१)

भावार्थ:- ‘रामराज्य’में किसी को दैहिक, दैविक और भौतिक तकलीफ नहीं है। सब मनुष्य परस्पर प्रेम करते हैं और मर्यादा में रहकर अपने-अपने धर्म का पालन करते हैं। लोगों को स्वतंत्रा थी पर वे दूसरे की स्वतंत्रा छीन नहीं सकते थे। लोकतांत्रिक मूल्यों की रक्षा के लिए सब कुछ दांव पर लगा दिया जाता था, सुरक्षा, न्याय और जीने का अधिकार सभी को था। जनता सुखी, समृद्ध थी। “रामराज्य’का आदर्श आज भी अनुकरणीय है और बिल्कुल संभव है। उसका पालन पूर्णतः व्यावहारिक है। आइये, आज पूरा देश राममय है, हम श्रीराम के सिखाए आदर्शों को जानकर उन्हें व्यवहार में लाने का प्रयास करें और रामराज्य की आधारशिला रखें। हमारे रामराज्य के आदर्श के रोडमैप पर चलकर कई देशों ने अलग-अलग क्षेत्रों में रामराज्य की स्थापना की है। फिर हम क्यों नहीं कर सकते?

देश का नाम : फिनलैंड

राजधानी  : हेलेंस्की

भारत की राजधानी दिल्ली से फिनलैंड मात्र 90 हजार किमी. दूर है। संयुक्त राष्ट्र ने इसे दुनिया का सबसे बेस्ट देश माना है। अब ये दुनिया की सबसे बड़ी इकोनॉमी में से एक बन गई।वर्ल्ड हैप्पीनेस रिपोर्ट 2023 में दुनिया का सबसे खुशहाल देश फिनलैंड को बताया गया है। इस लिस्ट में फिनलैंड के बाद दूसरे नंबर पर डेनमार्क और तीसरे पर आइसलैंड है। भारत 125वें पायदान पर और तुर्की 106 वें स्थान पर है।

कितनी विडंबना है कि हमारे फार्मूले से आज फिनलैंड शिक्षा के क्षेत्र में अपना परचम लहरा रहा है।इस देश ने शिक्षा के क्षेत्र में ‘रामराज्य’के मूल मंत्र ‘समानता’को अपनाया है। फिनलैंड में सभी के लिए शिक्षा मुफ्त और समान है – अमीर हो या गरीब। 99% बच्चे सरकारी स्कूलों में पढ़ रहे हैं। प्राइवेट स्कूल और टयूशन क्लास के लिए यहां कोई जगह नहीं है।

सरकारी नौकरी के लिए एक जैसी योग्यता मांगी जाती है। पूरे देश में टीचर ट्रेनिंग एक समान है। यहां बच्चों पर शिक्षा थोपी नहीं जाती। बच्चे 7 साल की उम्र में सीधे हाईस्कूल में दाखिल होते हैं। इसके लिए उन्हें कोई परीक्षा नहीं देनी होती है। जबकि भारत में बच्चा 2 से 2.5 साल की उम्र में स्कूल में एडमिशन लेता है और इसके लिए माता-पिता का इंटरव्यू लिया जाता है। फिनलैंड में स्कूल टीचर बिल्कुल एक मित्र की तरह बच्चों से पेश आते हैं. 3 वर्ष तक क्लास टीचर रहते हैं ताकि उनका स्टूडेंट से अपनेपन का रिश्ता बन सके और वे बेहतर शिक्षा दे सकें।

प्रिंसिपल, टीचर सब बराबरी से काम करते हैं, कोई भेदभाव नहीं है। आपको जानकर आश्चर्य होगा कि फिनलैंड में साल 1948 में स्कूलों में मिड-डे मिल के लिए कानून लागू किया गया था। प्रिंसिपल, टीचर , स्टूडेंट सब मिलकर एक साथ खाना खाते हैं। बच्चों के स्वास्थ्य का विशेष ध्यान रखा जाता है।

फायदे

1. कोई भी, कभी भी शिक्षा ले सकता है। क्योंकि यहां शिक्षा मुफ्त है।

2.बच्चों को अच्छा स्वास्थ्य और अच्छी शिक्षा मिलती है।

3.पढ़ाई में पिछड़े बच्चों का अच्छा भविष्य बनता है।

4.शिक्षा से स्किल्ड फौज तैयार हो रही है।

खुशी की 5 बड़ी वजहें

सुरक्षित देश

ये सबसे स्थिर और सुरक्षित देश है. यहां की कुल आबादी 55 लाख है। संगठित क्राइम तो यहां न के बराबर है। यहां की पुलिस और इंटरनेट सुरक्षा को दुनिया में दूसरे नंबर पर माना जाता है। कानून का पालन सख्ती से होता है।

आर्थिक सुरक्षा

यहां हर नागरिक को आर्थिक सुरक्षा, अधिकार और सुविधाएं हासिल हैं। उन्हें कभी ये नहीं सोचना पड़ता कि उनकी नौकरी चली गई तो क्या होगा या फिर अगर वो बूढ़े हो गए और उनके पास धन नहीं है तो क्या होगा या कोई दुर्घटना या तबीयत खराब हो जाए तो इलाज कैसे होगा? ये सारा जिम्मा सरकार उठाती है।

सबसे कम भ्रष्टाचार

यहां भ्रष्टाचार सबसे कम है। कहा जाता है कि यहां का समाज सबसे प्रोग्रेसिव है।

कोई बेघर नहीं

हालांकि यहां की जीडीपी कम है। ये दुनिया का अकेला देश होगा, जहां कोई बेघर नहीं है। अर्थव्यवस्था बहुत मजबूत है।

शुद्ध हवा और शुद्ध पानी

शुद्ध हवा के मामले में ये दुनिया के तीसरे नंबर का देश है। वर्ल्ड हेल्थ आर्गनाइजेशन की रिपोर्ट में ये बात कही गई है। वहीं पानी के मामले में दुनिया में बेहतरीन स्थिति में है। इसे झीलों का देश भी कहते हैं।वहीं यहां काफी बडी मात्रा में जंगल हैं।

बेहतरीन शिक्षा व्यवस्था

यहां की शिक्षा व्यवस्था की मिसालें पूरी दुनिया में दी जाती हैं। ये दुनिया के सबसे साक्षर देशों में भी है।

 

फिनलैंड की आबादी सिर्फ 58 लाख है। इनके लिए दो ही सहारे हैं शिक्षा और जंगल। इन्होंने शिक्षा पर फोकस किया है और इस क्षेत्र में रामराज्य लाए। यही वजह है कि अकादमिक या व्यावसायिक उच्च विद्यालयों से 93 प्रतिशत फिन स्नातक हैं।फिनलैंड के 66 प्रततिशत स्टूडेंट्स हायर एजुकेशन हासिल करते हैं जो यूरोपीय संघ में सबसे अधिक है। जरूरत है हमें फिनलैंड से सीखने की ताकि आने वाले बच्चे सुखद भविष्य का सपना देख सकें। आखिर फिनलैंड हमारे ही कांसैप्ट पर काम कर रहा है। फिर हम क्यों नहीं कर सकते? आ सकता है भारत में भी ‘रामराज्य’।

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