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संस्मरण : मेरा बचपन और घर परिवार

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किसी भी लेखक के साहित्य सृजन पर उसके जीवन का गहरा प्रभाव पड़ता है ।  प्रत्येक कवि  – लेखक के आत्मीय सरोकारों में उसके गाँव – शहर के अलावा घर परिवार के आत्मीय परिवेश की भूमिका अमिट होती है।  कृष्णदेव चतुर्वेदी के प्रस्तुत  संस्मरण को पढ़ना इस दृष्टि से रोचक है . .       

कृष्णदेव चतुर्वेदी,भोजपुरी कवि

मेरा जन्म ग्राम घेउरिया पोस्ट सुकरवलिया, थाना इटाढी, जिला बक्सर बिहार में एक किसान परिवार में  हुआ था। जन्म के समय ही मेरे पिताजी का एक हाथ  फुटबॉल मैच खेलते हुए टूट गया था। स्वाभाविक रूप से गांव के कई लोगों ने कहा कि बालक का जन्म उचित समय में नहीं हुआ है जिसके कारण परिवार पर आफत आई है। देखते-देखते समय निकलने लगा और  पिताजी मध्य प्रदेश के सीधी जिले में आकर वन विभाग में लिपिक के पद पर नौकरी करने लगे। कुछ समय बाद  दादा जी ने मुझे और मेरी मां को भी सीधी में ही पिताजी के पास शिफ्ट कर दिया। यहीं से 6 वर्ष की आयु में शुरू हुई मेरी प्राथमिक शिक्षा की पढ़ाई। किन्तु शीघ्र ही मुझे पढ़ाई छोड़नी पड़ी। क्योंकि विद्यालय के एक गुरु जी ने बांस की छड़ी से मेरी बहुत पिटाई कर दी।जिसके कारण  मैं बीमार पड़ गया। अब पिताजी का ट्रांसफर में सीधी से भोपाल हो गया। पिताजी भोपाल में सरकारी मकान मिलने पर मुझे और बहन के साथ माताजी को भी भोपाल में ही ले आए। अब मेरी उम्र लगभग 11 वर्ष की हो चुकी थी। पिताजी ने भोपाल में ही एक गुरुजी की सहायता से कक्षा 5वीं की प्राइवेट परीक्षा दिलवाई। मैं उत्तीर्ण हुआ और भोपाल के शिवाजी नगर स्थित शासकीय राजीव गांधी माध्यमिक शाला में विधिवत कक्षा 6 से पढ़ाई आरंभ हुई।

कक्षा 6-7-8 की पढ़ाई एक कमजोर विद्यार्थी के रूप में ही हुई । मुझे हिंदी पढ़ना तो बहुत अच्छा आता था। किंतु गणित और अंग्रेजी बिल्कुल भी समझ में नहीं आता था। पढ़ाई के नाम पर मैं स्कूल और स्वाध्याय के भरोसे था। हां पिताजी जब कभी पढ़ाई के लिए अपने पास बैठे थे तो वह सिखलाने के स्थान पर मेरी परीक्षा ही लेते और सवाल आदि हल न करने पर नाराज होकर पिटाई कर दिया करते थे। अतः मैं बहुत अच्छी तरह से अपनी पढ़ाई नहीं कर सका। मां निरक्षर और घरेलू महिला थीं। वे चाह कर भी मुझे नहीं पढ़ा सकती थी।  ट्यूशन का तो प्रश्न ही नहीं था क्योंकि माली हालत इतनी अच्छी नहीं थी।
एक बार शिक्षक ने कुछ ट्रांसलेशन अंग्रेजी में करने को दिया। उनमें से एक पंक्ति मुझे याद है जो इस प्रकार थी- (यह एक आम है। ) इसका अंग्रेजी में अनुवाद करना था। इस प्रकार के 10 वाक्य थे। मैंने उन पंक्तियों को  रोमन अंग्रेजी में लिख दिया था जो इस प्रकार है (yah ek aam hai ) । विद्यालय के शिक्षक में इस ट्रांसलेशन को सही माना और राइट {√}  का निशान लगा दिया । किंतु एक दिन जब  पिताजी ने यह अनुवाद देखा तो मेरी खुशी हवा हो गई। मुझे बताया कि यह सब गलत है। उस समय मुझे कुछ भी समझ में नहीं आया। पर मैं इसी प्रकार पढ़ाई करता हुआ कक्षा आठवीं पास हो गया।
अब बारी हायर सेकेंडरी स्कूल में प्रवेश की थी हमारे घर के पास ही एक बड़ा हायर सेकेंडरी स्कूल सरकारी था। उसका नाम उस समय शासकीय सुभाष उच्चतर माध्यमिक विद्यालय था जो अब बदल कर शासकीय एक्सीलेंस सुभाष उच्चतर माध्यमिक विद्यालय शिवाजी नगर भोपाल कर दिया गया है। कक्षा 9 में प्रवेश हेतु मैं  पिताजी के साथ विद्यालय में गया। प्रवेश फार्म में गणित , विज्ञान संकाय भरकर प्राचार्य  के पास पहुंचे। प्राचार्य केएन तिवारी ने आवेदन पत्र देखा और उसके साथ संलग्न कक्षा आठवीं के अंकसूची भी देखी जिसमें विज्ञान विषय में मुझे 8 नंबर के कृपांक (ग्रेस) द्वारा उत्तीर्ण किया गया था। प्राचार्य तिवारी  ने पिताजी को बताया कि बालक विज्ञान विषय में कमजोर है अतः इसे कला संकाय में प्रवेश दिलाइए। पिताजी मान गए और मैं कला संकाय के हिंदी विशेष, सामान्य अंग्रेजी, इतिहास, अर्थशास्त्र और नागरिक शास्त्र के साथ पढ़ने लगा। मुझे हिंदी, इतिहास, अर्थशास्त्र, नागरिक शास्त्र आदि विषय पढ़ने में आनंद आने लगा। हां, अंग्रेजी में जरूर कठिनाई थी किंतु अब मैं थोड़ा – थोड़ा अंग्रेजी के व्याकरण को भी स्वाध्याय से अभ्यास करने लगा था। हिंदी भाषा का साहित्य मुझे भाने लगा।
 अर्थशास्त्र के व्याख्याता बरुआ जी मुझे पसंद करने लगे थे तथा नागरिक शास्त्र के व्याख्याता सुरेंद्र नाथ दुबे भी मुझसे बहुत स्नेह करने लगे।वे आज देश के उच्च श्रेणी के शिक्षाविद हैं। सुब्बा राव के साथ मिलकर सर्वोदयी “जय जगत”आंदोलन के प्रणेता बने हुए हैं। उन्होंने अपनी अंतरराष्ट्रीय स्कूल शिक्षा मासिक पत्रिका में मेरे सैकड़ों आलेख एवं कविताओं को स्थान दिया है।   कक्षा 9 वीं में इतिहास के शिक्षक शुक्ला ने स्वतंत्रता दिवस के अवसर पर एक गीत लिखने के लिए सभी  छात्रों से कहा। उनके निर्देश पर मैं कक्षा का एकमात्र छात्र था जिसने गीत लिखने का प्रयास किया। गीत के प्रति मेरे मन में यहीं से अनुराग उत्पन्न हुआ जो अनवरत आज तक विद्यमान है।
 हायर सेकेंडरी की परीक्षा मैंने अच्छे अंकों से उत्तीर्ण की। जिसे देखकर मेरे माता- पिता आश्चर्य चकित हुए।    अब स्नातक स्तर की पढ़ाई की बात आई तो पिताजी ने मुझे स्वच्छंद छोड़ दिया की जो मन चाहे वह विषय लेकर पढ़ो। यहां पर मेरी मुलाकात आनंद से हुई। वह मेरा मित्र बन चुका था उसने जो विषय लिया उसने मुझे भी वही विषय लेने को प्रेरित किया। यहां पर  चूक हो गई कि मैंने अंग्रेजी साहित्य, मनोविज्ञान, अर्थशास्त्र ले लिया जबकि मुझे अंग्रेजी का उतना अभ्यास नहीं था। परिणाम स्वरूप मैं अंग्रेजी साहित्य में अनुत्तीर्ण हो गया।1975 में इमरजेंसी के चलते मुझे पढ़ाई छोड़नी पड़ी। मैं रोजगार की तलाश में भोपाल के शासकीय- अशासकीय कार्यालयों में कार्य करने लगा। 4 वर्ष बाद वर्ष 1980 में पुनः स्वाध्यायी छात्र के रूप में भोपाल  विश्वविद्यालय में शामिल हुआ। स्नातक के पश्चात मैंने इतिहास और अर्थशास्त्र में स्नातकोत्तर भी किया।
अब मैं भोपाल में ही सरकारी कार्यालय में स्थाई कर्मचारी के रूप में कार्य कर रहा था। पार्ट टाइम अर्थात सायं कालीन विद्यालय से विधि स्नातक भी कर रहा था। अगले वर्षों में मैं भोपाल के ही शिक्षा विभाग में कनिष्ठ कर्मचारी चयन आयोग की परीक्षा उत्तीर्ण कर शिक्षक के रूप में कार्यरत हो गया। तब मैंने शिक्षण स्नातक (Bed) की परीक्षा भी उत्तीर्ण कर ली। मुझे खुशी इस बात की है कि मैंने अपने जीवन के शैक्षणिक अनुभव की सहायता से आज भी विद्यार्थियों को बड़े स्नेह और दुलार के साथ मार्गदर्शन देता हूं।
                                                                                            ( राजीव कुमार झा से बातचीत पर आधारित)

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अब आएगा रामराज्य?

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अयोध्या के राममंदिर में अब ‘रामलला’ आने वाले हैं। देश-विदेश में उत्सव मनाए जा रहे हैं। पीएम मोदी 22 जनवरी को इस भव्य मंदिर का उद्घाटन करेंगे। नरेन्द्र मोदी और उनकी सरकार के प्रयासों से अयोध्या में भगवान राम विराज रहें हैं। अब उम्मीद है कि देश में जल्द ही रामराज्य भी आएगा। परंतु राम राज्य है क्या ? यह जानना बहुत जरुरी है। गोस्वामी तुलसीदास व्दारा रचित ‘रामचरितमानस के उत्तरकाण्ड में ‘रामराज्य’की कल्पना करते हुए एक आदर्श शासन व्यवस्था का प्रारूप प्रस्तुत किया गया है। ‘रामचरितमानस’में  तुलसीदासजी कहते हैं –“ दैहिक दैविक भौतिक तापा। राम राज नहिं काहुहि ब्यापा

सब नर करहिं परस्पर प्रीती। चलहिं स्वधर्म निरत श्रुति नीती ” (मानस,उ.कां.२१.१)

भावार्थ:- ‘रामराज्य’में किसी को दैहिक, दैविक और भौतिक तकलीफ नहीं है। सब मनुष्य परस्पर प्रेम करते हैं और मर्यादा में रहकर अपने-अपने धर्म का पालन करते हैं। लोगों को स्वतंत्रा थी पर वे दूसरे की स्वतंत्रा छीन नहीं सकते थे। लोकतांत्रिक मूल्यों की रक्षा के लिए सब कुछ दांव पर लगा दिया जाता था, सुरक्षा, न्याय और जीने का अधिकार सभी को था। जनता सुखी, समृद्ध थी। “रामराज्य’का आदर्श आज भी अनुकरणीय है और बिल्कुल संभव है। उसका पालन पूर्णतः व्यावहारिक है। आइये, आज पूरा देश राममय है, हम श्रीराम के सिखाए आदर्शों को जानकर उन्हें व्यवहार में लाने का प्रयास करें और रामराज्य की आधारशिला रखें। हमारे रामराज्य के आदर्श के रोडमैप पर चलकर कई देशों ने अलग-अलग क्षेत्रों में रामराज्य की स्थापना की है। फिर हम क्यों नहीं कर सकते?

देश का नाम : फिनलैंड

राजधानी  : हेलेंस्की

भारत की राजधानी दिल्ली से फिनलैंड मात्र 90 हजार किमी. दूर है। संयुक्त राष्ट्र ने इसे दुनिया का सबसे बेस्ट देश माना है। अब ये दुनिया की सबसे बड़ी इकोनॉमी में से एक बन गई।वर्ल्ड हैप्पीनेस रिपोर्ट 2023 में दुनिया का सबसे खुशहाल देश फिनलैंड को बताया गया है। इस लिस्ट में फिनलैंड के बाद दूसरे नंबर पर डेनमार्क और तीसरे पर आइसलैंड है। भारत 125वें पायदान पर और तुर्की 106 वें स्थान पर है।

कितनी विडंबना है कि हमारे फार्मूले से आज फिनलैंड शिक्षा के क्षेत्र में अपना परचम लहरा रहा है।इस देश ने शिक्षा के क्षेत्र में ‘रामराज्य’के मूल मंत्र ‘समानता’को अपनाया है। फिनलैंड में सभी के लिए शिक्षा मुफ्त और समान है – अमीर हो या गरीब। 99% बच्चे सरकारी स्कूलों में पढ़ रहे हैं। प्राइवेट स्कूल और टयूशन क्लास के लिए यहां कोई जगह नहीं है।

सरकारी नौकरी के लिए एक जैसी योग्यता मांगी जाती है। पूरे देश में टीचर ट्रेनिंग एक समान है। यहां बच्चों पर शिक्षा थोपी नहीं जाती। बच्चे 7 साल की उम्र में सीधे हाईस्कूल में दाखिल होते हैं। इसके लिए उन्हें कोई परीक्षा नहीं देनी होती है। जबकि भारत में बच्चा 2 से 2.5 साल की उम्र में स्कूल में एडमिशन लेता है और इसके लिए माता-पिता का इंटरव्यू लिया जाता है। फिनलैंड में स्कूल टीचर बिल्कुल एक मित्र की तरह बच्चों से पेश आते हैं. 3 वर्ष तक क्लास टीचर रहते हैं ताकि उनका स्टूडेंट से अपनेपन का रिश्ता बन सके और वे बेहतर शिक्षा दे सकें।

प्रिंसिपल, टीचर सब बराबरी से काम करते हैं, कोई भेदभाव नहीं है। आपको जानकर आश्चर्य होगा कि फिनलैंड में साल 1948 में स्कूलों में मिड-डे मिल के लिए कानून लागू किया गया था। प्रिंसिपल, टीचर , स्टूडेंट सब मिलकर एक साथ खाना खाते हैं। बच्चों के स्वास्थ्य का विशेष ध्यान रखा जाता है।

फायदे

1. कोई भी, कभी भी शिक्षा ले सकता है। क्योंकि यहां शिक्षा मुफ्त है।

2.बच्चों को अच्छा स्वास्थ्य और अच्छी शिक्षा मिलती है।

3.पढ़ाई में पिछड़े बच्चों का अच्छा भविष्य बनता है।

4.शिक्षा से स्किल्ड फौज तैयार हो रही है।

खुशी की 5 बड़ी वजहें

सुरक्षित देश

ये सबसे स्थिर और सुरक्षित देश है. यहां की कुल आबादी 55 लाख है। संगठित क्राइम तो यहां न के बराबर है। यहां की पुलिस और इंटरनेट सुरक्षा को दुनिया में दूसरे नंबर पर माना जाता है। कानून का पालन सख्ती से होता है।

आर्थिक सुरक्षा

यहां हर नागरिक को आर्थिक सुरक्षा, अधिकार और सुविधाएं हासिल हैं। उन्हें कभी ये नहीं सोचना पड़ता कि उनकी नौकरी चली गई तो क्या होगा या फिर अगर वो बूढ़े हो गए और उनके पास धन नहीं है तो क्या होगा या कोई दुर्घटना या तबीयत खराब हो जाए तो इलाज कैसे होगा? ये सारा जिम्मा सरकार उठाती है।

सबसे कम भ्रष्टाचार

यहां भ्रष्टाचार सबसे कम है। कहा जाता है कि यहां का समाज सबसे प्रोग्रेसिव है।

कोई बेघर नहीं

हालांकि यहां की जीडीपी कम है। ये दुनिया का अकेला देश होगा, जहां कोई बेघर नहीं है। अर्थव्यवस्था बहुत मजबूत है।

शुद्ध हवा और शुद्ध पानी

शुद्ध हवा के मामले में ये दुनिया के तीसरे नंबर का देश है। वर्ल्ड हेल्थ आर्गनाइजेशन की रिपोर्ट में ये बात कही गई है। वहीं पानी के मामले में दुनिया में बेहतरीन स्थिति में है। इसे झीलों का देश भी कहते हैं।वहीं यहां काफी बडी मात्रा में जंगल हैं।

बेहतरीन शिक्षा व्यवस्था

यहां की शिक्षा व्यवस्था की मिसालें पूरी दुनिया में दी जाती हैं। ये दुनिया के सबसे साक्षर देशों में भी है।

 

फिनलैंड की आबादी सिर्फ 58 लाख है। इनके लिए दो ही सहारे हैं शिक्षा और जंगल। इन्होंने शिक्षा पर फोकस किया है और इस क्षेत्र में रामराज्य लाए। यही वजह है कि अकादमिक या व्यावसायिक उच्च विद्यालयों से 93 प्रतिशत फिन स्नातक हैं।फिनलैंड के 66 प्रततिशत स्टूडेंट्स हायर एजुकेशन हासिल करते हैं जो यूरोपीय संघ में सबसे अधिक है। जरूरत है हमें फिनलैंड से सीखने की ताकि आने वाले बच्चे सुखद भविष्य का सपना देख सकें। आखिर फिनलैंड हमारे ही कांसैप्ट पर काम कर रहा है। फिर हम क्यों नहीं कर सकते? आ सकता है भारत में भी ‘रामराज्य’।

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कौन बनेगा सीएम

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भोपाल.मध्य प्रदेश विधानसभा चुनाव में बीजेपी ने ऐतिहासिक विजय प्राप्त की है। प्रदेश में शिवराज सिंह चौहान के नेतृत्व में बीजेपी की सरकार चल रही है, लेकिन बीजेपी की तीन राज्यों में जीत के बाद भी अभी तक सीएम के नाम का ऐलान नहीं हुआ है। इस बीच मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने कहा कि  “मेरे जेहन में एक ही मिशन है 2029। उन्होंने कहा, मैं वही करूगा, जो पार्टी कहेगी।” चौहान ने कहा कि यह काम मेरा नहीं है, मेरी पार्टी का है। मैं केवल अपने काम करने में रूचि रखता हूं। बाकी चिंता पार्टी को करनी है। वह पार्टी करेगी। जो काम जिसका है, वह करे, मैं वह चिंता क्यों करूं? ”

मोदी के गले में 29 फूलों की माला पहनाना है

शिवराज सिंह चौहान ने कहा, “मैं भाजपा का कार्यकर्ता हूं. एक बड़े मिशन के लिए काम करना है।जनसंघ के निर्माताओं ने जो सोचा था, उसे पीएम मोदी पूरा कर रहे हैं।”सीएम ने कहा, “विधानसभा चुनाव में विजय के बाद एक मात्र लक्ष्य लोकसभा चुनाव जीतना है, क्योंकि मैं मानता हूं कि देश के लिए पीएम मोदी आवश्यक हैं। अगले लोकसभा चुनाव में एमपी की सभी 29 सीटें जीतेंगे। मध्य प्रदेश से 29 सीटें जीत कर पीएम मोदी के गले में 29 फूलों का माला पहनाना है। मोदी प्रधामंत्री जी बनेंगे, इसलिए हमारा मिशन 29 आरंभ हो गया है।”

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सत्ता का सेमीफाइनल हार चुके हैं खड़गे

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कांग्रेस में भूपेश बघेल, अशोक गहलोत और कमलनाथ जैसे अहंकारी और पार्टी हाईकमान के निर्देशों को ठेंगा दिखाने वाले नेताओं को रास्ता दिखाने का वक्त है।खड़गे को मालूम होना चाहिए कि वे सत्ता का सेमीफाइनल हार चुके हैं। अगर क्रिकेट की तरह सियासत में भी नॉकआउट होता तो कांग्रेस 2024 के सीन से गायब थी।ये वही नेता हैं, जिन्होंने पार्टी नेतृत्व को लगातार झांसा दिया कि हम जीत रहे हैं और आज INDIA को कमज़ोर कर दिया।

असल में जीते तो सुनील कोणुगोलू हैं, जिनकी रणनीति ने 3 राज्यों में पार्टी की सरकार बना दी।उसी सुनील को नकुल नाथ के भोपाल वाले मकान से खदेड़ दिया गया, क्योंकि कमलनाथ बागेश्वर बाबा के पैरों में गिरना चाहते थे।

खड़गे को यह भी पता रहा होगा कि भूपेश बघेल ने किस तरह मंत्रियों के पर काटे। किस तरह विधायकों की ताकत अफसरों से कम करवाई गई। और यह भी कि किस तरह अशोक गहलोत सचिन पायलट को नीचा दिखाने के लिए यह कहते रहे कि मैं नहीं, कुर्सी मुझसे चिपकी है। आज कुर्सी नहीं है। घर बैठें। कांग्रेस नेतृत्व चुप रहा, क्योंकि यही नेता पार्टी और कार्यकर्ताओं के लिए फंड जुगाड़ रहे थे। कांग्रेस संगठन को सख्त अनुशासन की जरूरत है, बीजेपी की तरह।अगर कांग्रेस 2024 का फाइनल नहीं जीत पाती है, तो समझ ले कि आगे कभी जीत नहीं पाएगी।

 – सौमित्र रॉय , वरिष्ठ पत्रकार.

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