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दुर्गा सप्तशती का पाठ करते समय रखें इन बातों का ध्यान

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पं. विनोद शास्त्री. आज से नवरात्र आरंभ होते ही पूरे देश में मां दुर्गा की पूजा-उपासना शुरू हो गई है। धार्मिक मान्यता के अनुसार इस दौरान जो भक्त पूरे नौ दिन दुर्गा सप्तशती का पाठ करता है उसे सभी कष्टों से मुक्ति मिलती है.  दुर्गा सप्तशती सब तरह की चिंताओं, क्लेश, शत्रु बाधा से मुक्ति दिलाती है.  लेकिन इसके शुभ फल प्राप्त करने के लिए जानते हैं दुर्गा सप्तशती का पाठ करने का सही तरीका  क्या हैं-

दुर्गा सप्तशती की पुस्तक को किसी चौकी पर लाल रंग का  वस्त्र बिछाकर उसके ऊपर  के ऊपर रखें। मान्यता के अनुसार हाथ में सप्तशती की पुस्तक लेकर पाठ नहीं करना चाहिए इससे अधूरे फल की प्राप्ति होती है।

दुर्गा सप्तशती का पाठ करें तो पाठ बीच में छोड़कर न उठें। इसके साथ ही पाठ को कहीं भी न रोकें। यदि आप सम्पूर्ण पाठ करते हैं तो चतुर्थ अध्याय पूरा होने के बाद  ही विराम ले सकते हैं।

पाठ करते समय शब्दों का उच्चारण स्पष्ट और लय में होना चाहिए। पाठ की गति न ही बहुत तेज हो और न ही बहुत धीमी।

पाठ आरंभ करने से पहले ध्यान रखें कि आप जिस भी आसन पर विराजमान हो रहे हैं, बैठने से पहले उसका शुद्धिकरण करें। आसन या तो लाल रंग का या कुश का होना चाहिए।

दुर्गा सप्तशती का पाठ आरंभ करें तो सबसे पहले पुस्तक को हाथ जोड़कर प्रणाम करें। उसके बाद माता रानी का ध्यान करें और फिर पाठ करना आरंभ करें।

कलश स्थापना मुहूर्त 26 सितंबर 2022

इस साल कलश सथापना का शुभ मुहूर्त सुबह 6 बजकर 11 मिनट से लेकर 7 बजकर 30 मिनट तक रहेगा। हस्त नक्षत्र शुक्ल योग में होगा। इस समय कलश स्थापना नहीं कर पाते हैं तो आप 9 बजकर 12 मिनट से 10 बजकर 42 मिनट के बीच घट स्थापित कर सकते हैं हस्त नक्षत्र ब्रह्म योग में कलश स्थापन कर सकते हैं। नवरात्रि पर कलश स्थापित करने के लिए तीसरा शुभ मुहूर्त 11 बजकर 48 से 12 बजकर 36 मिनट तक रहेगा। इस समय अभिजीत मुहूर्त, हस्त नक्षत्र और ब्रह्म योग मौजूद रहेगा। आप अपनी सुविधा के अनुसार इनमें से कोई भी मुहू्र्त कलश स्थापना के लिए चुन सकते हैं। इस साल माता का आगमन हाथी पर शुभ मूहूर्त में हो रहा है इसलिए बेचैन होने की जरूरत भी नहीं है आप अपनी सुविधा और साधन के अनुसार इन मुहू्र्तों में से कोई भी मुहूर्त चुन सकते हैं।

मां शैलपुत्री – नवरात्रि का पहला दिन

मंत्र :  ॐ देवी शैलपुत्र्यै नमः॥

या देवी सर्वभूतेषु माँ शैलपुत्री रूपेण संस्थिता।

नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नम:॥

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