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स्ट्रगल को सक्सेस स्टोरी बनाएगा ‘बॉलीवुड कॉलिंग’
डायरेक्टर सचिन्द्र ने लॉन्च किया वेबपोर्टल
डॉ. शांतनु शर्मा. मुंबई.सचिन्द्र शर्मा खुद भी स्ट्रगलर रहे हैं। 21 साल की उम्र में छोटी-छोटी हथेलियों में बड़े-बड़े सपने लेकर मुंबई पहुंचे। दूसरे ही दिन एक फिल्म में छोटा सा रोल भी मिल गया। लगने लगा अब सपने सच हो जाएंगे। लेकिन उनके सारे सपने टूट गए। स्ट्रगल का लंबा दौर शुरू हुआ पर उन्होंने हिम्मत नहीं हारी। बॉलीवुड में अपना मुकाम बनाया। आज वे एक सफल प्रोडयूसर और डायरेक्टर हैं।
स्ट्रगलर के दर्द को सचिन्द्र से अच्छा भला कौन समझ सकता है। उनके मन में बहुत दिनों से स्ट्रगलरर्स के लिए कुछ करने की इच्छा थी। लेकिन सवाल यह था कि ऐसा क्या करें जिससे स्ट्रगलरर्स को मुंबई आने के बाद धक्के ना खाना पड़े और मंजिल भी मिल जाए। आखिर उन्हें एक आइडिया सूझा। क्यों ना इनके लिए एक प्लेटफार्म बनाया जाए। बस….यहीं से शुरू हुआ ‘बॉलीवुड कॉलिंग’ का सफर।
सचिन्द्र शर्मा |
महाराष्ट्र खबर 24 से बातचीत करते हुए प्रोडयूसर व डायरेक्टर सचिंद्र शर्मा ने कहा कि फिल्मों में काम करने की इच्छा लिए हर दिन , हजारों लोग यह आजमाने के लिए इस शहर का रुख करते हैं कि क्या उनकी किस्मत सिनेमा की दुनिया में उन्हें चमक दिलाएगी? पर अधिकांश लोग असफल हो जाते हैं। संघर्ष से घबराकर खाली हाथ घर भी लौट जाते हैं। कोई फ्रॉड का शिकार हो जाता है। कोई गलत रास्ता पकड़ लेता है। ऐसे ही कई प्रतिभाएं दम तोड़ देती हैं।
इसका सिर्फ एक ही कारण होता है सही मार्गदर्शन और सही जानकारी का ना होना। इसलिए हमने तय किया कि ‘बॉलीवुड कॉलिंग’ के प्लेटफार्म से फिल्म पटकथा, अभिनय, निर्देशन, मॉडलिंग, डान्सिंग, गीत-संगीत और पोस्ट प्रोडक्शन से जुड़ी अहम जानकारियां दी जाएं। ताकि स्ट्रगलर अपने संघर्ष को सक्सेस स्टोरी बना सके। सीनियर जर्नलिस्ट ज्योति वेंकटेश कहते हैं नए लोगों को कोई जानकारी नहीं होती। इसलिए वे भटक जाते हैं। हम उन्हें सही रास्ता दिखाकर उनका करियर खराब होने से बचाना चाहते हैं।
इसी टारगेट को लेकर आज यानी सोमवार को ‘बॉलीवुड कॉलिंग’ वेब पोर्टल लॉन्च किया गया। इस मौके पर सीनियर अविराज दापोडिकर ,जर्नलिस्ट ज्योति वेंकटेश, संचिता सेन, अमित मिश्रा, उज्जवल रॉय चौधरी, अंकुर त्यागी, शुभम शर्मा और परिधि शर्मा मौजूद थे। आज 24 जनवरी से ‘बॉलीवुड कॉलिंग’ ऑनलाइन देखा जा सकता है।
लांचिंग |
बताया सक्सेस मंत्र
सचिन्द्र का मानना है कि सफलता का कोई शार्टकट नहीं होता। बस आपको सही वक्त पर, सही जगह निशाना लगाना आना चाहिए। तभी सफलता आपके कदम चूमेगी। यही सफलता का सबसे बड़ा मंत्र है। उन्होंने कहा कि मेरा बेटा शुभम फिल्म में हाथ आजमाना चाहता था। मैंने उसे सलाह दी कि पहले थिएटर में काम करो।अभी फिल्म की मत सोचो। उसने मेरी बात सुनी। शुभम को ‘जलियांवाला बाग’ प्ले में काम मिल गया। इसे अशोक बांटिया डायरेक्ट कर रहे हैं। यानी अभी शुभम सही जगह पर निशाना लगाना सीख रहे हैं….सही वक्त का इंतजार है। जाने-माने अभिनेता अन्नू कपूर शुभम से बहुत प्रभावित हैं। खासतौर पर उनकी आवाज के तो बहुत बड़े फैन हैं।
अन्नू कपूर के साथ शुभम |
जर्नलिस्ट से डायरेक्टर
अविराज डी |
सचिन्द्र शर्मा ने अपना कैरियर 1992 में फिल्म पत्रकार के तौर पर शुरू किया था। बाद में उन्होंने पटकथा लेखन, निर्देशन और फिल्म निर्माण क्षेत्र में हाथ आजमाया। सचिन्द्र ने फिल्म ‘काबू’ (2002), ‘बॉर्डर हिंदुस्तान का’ (2003), ‘शबनम मौसी’, ‘धमकी’ (2005), ‘मिस अनारा’ (2007), ‘माई फ्रेंड गणेशा (फिल्म श्रृंखला 2007), ‘सांवरिया’ (2007), ‘माई हस्बैंडस वाइफ’ (2010), ‘मैं कृष्णा हूँ’, ‘ज़िन्दगी 50-50 ‘(2013), ‘लव यू फैमिली’ (2017), ‘सत्य साईं बाबा’ (2021) के अलावा मराठी फिल्म ‘बाला’ जैसी कई हिट फिल्मों का लेखन और निर्देशन किया। सचिन्द्र ओटीटी प्लेटफार्म के जरिए भी खास मुकाम बना रहे हैं।
सचिन्द्र फिलहाल ‘जैक एंड मिस गिल’फिल्म के निर्माण में व्यस्त हैं। फिल्म के निर्देशक अविराज डी हैं।यशराज स्टूडियो में ‘जैक एंड मिस गिलका एक गाना सिंगर श्रेयांश बी के स्वर में रिकॉर्ड किया जा चुका है। फिल्म के लिए विजय संदीप गोलछा के गीतों को संगीतकार मिलन हर्ष ने मधुर संगीत से सजाया है।
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ये हैं असली ‘हीरो’
ये स्टोरी राजा की है जो राजकपूर के जबरा फैन थे। राज जी से इंस्पायर होकर 20 साल की उम्र में हीरो बनने मुंबई पहुंचे। बहुत स्ट्रगल करने के बाद छोटा सा काम मिला एक्टर्स को हिन्दी में सही तरीके से डॉयलॉग बुलवाने का। थोड़े दिन बाद आर.के. स्टूडियो में काम मिल गया। वहां इनकी भगवान दादा से दोस्ती हो गई। ये वही भगवान दादा हैं जिनकी डांस की नकल अमिताभ बच्चन किया करते हैं- ऐसा कहा जाता है।
राजा |
खैर, भगवान दादा ने राजा की दोस्ती फिल्म डायरेक्टर जागीरदार से करवाई। जागीरदार इनसे बहुत प्रभावित हुए। उन्होंने राजा को एक फिल्म की कहानी लिखने का ऑफर दिया। कहानी पढ़कर जागीरदार ने फिल्म बनाने का फैसला किया। फिल्म का नाम रखा गया ‘बहू’। जागीरदार ने राजा को ही फिल्म का हीरो बनाया। कुछ रील बनने के बाद फिल्म रूक गई। वजह आर्थिक हालत खस्ता।
राजा का संघर्ष फिर शुरू हो गया। बहुत संघर्ष के बाद जब कुछ हाथ नहीं लगा तो वो घर लौट आए। परिवार वाले पहले से ही नाराज थे। उन्होंने कोई मदद नहीं की। राजा ने नागपुर आकर टयूशन शुरू की और मॉरिस कॉलेज में एडमिशन लिया।
समय का खेल देखिए राजा को बीए और एमए में गोल्ड मेडल मिला। उन्होंने कई रिकार्ड तोड़े। उनका चयन आईएएस के लिए हो गया। वे मध्यप्रदेश में कई जगह कलेक्टर के पद पर रहे। उन्हें कई अवार्डों से नवाजा गया। वे एक दबंग अधिकारी के रूप में आज भी याद किए जाते हैं। हालांकि अब वे इस दुनिया में नहीं है। लेकिन उनकी ये स्टोरी आज भी रास्ता दिखाती है।
धोखा हुआ पर, हिम्मत नहीं हारी
ये स्टोरी खुद सचिन्द्र शर्मा की है। उनके साथ कैसे धोखा हुआ, उन्हीं की जुबानी-आधी रात को मैं मुंबई के एक स्टेशन पर उतरा। मेरी जेब में 5 हजार रूपए थे। सुबह मुझे जानकारी मिली की एक जगह पर शूटिंग चल रही है। मैं वहां पहुंच गया और डायरेक्टर से मिला। उन्होंने मुझे बैठने के लिए कहा। थोड़ी देर में एक लड़का आया और बोला तुमको डायरेक्टर साहब ने बुलाया है।
पता चला कि एक आर्टिस्ट नहीं आया है जिसके कारण शूटिंग रूकी हुई है। डायरेक्टर ने मुझसे पूछा तुम काम करोगे, मैंने तुरंत हामी भर दी। मैं खुशी-खुशी घर लौट आया। अखबारों में फिल्म के बारे में पढ़ा। बहुत दिन बीत गए पर फिल्म रिलीज नहीं हुई।
जब मैंने इस बारे में डायरेक्टर से पूछा तो वे बोले घर से रूपए मंगाओ । फेम के लिए रूपए तो खर्च करने ही पड़ेंगे। मैंने तुरंत 4 हजार रूपए दे दिए। बाद में पता चला कि माजरा कुछ और ही था। खैर बचे 1 हजार रूपए से मैंने कैसे दिन काटे, मैं ही जानता हूं, लेकिन हिम्मत नहीं हारी और आज इस मुकाम पर हूं।
जीना इसी का नाम है
तजिन्दर |
टीवी और डिजिटल माध्यमों में काम करने वाले जर्नलिस्ट तजिन्दर सिंह को कुछ समय मुंबई में रहने का मौका मिला। इस दौरान उन्होंने स्ट्रगलरर्स की जिंदगी को करीब से देखा। वे बताते हैं कि मेरी पहली मुलाकात ही एक ऐसे स्ट्रगलर से हुई जो आया तो था हीरो बनने। लेकिन कड़े संघर्ष के बाद भी सफलता हाथ नहीं लगी। उसने मन छोटा नहीं किया। ऑटो खरीदा और चलाने लग गया। उसका सपना भले ही टूट गया हो पर आज भी वो जिंदादिली से जी रहा है।
इसी दौरान तजिन्दर वीरा देसाई रोड स्थित एक होस्टल में भी रुके थे। वे बताते हैं कि मुझे यहां कई ऐसे स्ट्रगलर मिले, जो फिल्म इंडस्ट्री में काम करना चाहते थे। सभी प्रतिभावान थे। पर वे मिसगाइडेड थे। उन्हें ये नहीं पता था कि कैसे हम मंजिल तक पहुंचे।