कांग्रेस नेता राहुल गांधी अपनी पतलून ऊंची कर हरियाणा के एक खेत में पहुंच गए।किसानों से बात की। खेत में धान रोपा। ट्रैक्टर चलाया।मैंने किसानों से यह जाना है कि धान रोपाई दुनिया के सबसे मुश्किल काम में से एक है। घंटों कमर झुकाए धान के हर पौधे को रोपना। खेत की ढाल, क्यारियां, पौधों के बीच का फासला और फिर खाद–पानी के साथ मौसम की मेहरबानी का इंतजार। यहां स्त्री–पुरुष दोनों बराबर हैं।आगे किसान के बाजार खड़ा है। वही बाजार, जिसके आगे मनमोहन झुक गए और किसानों की सब्सिडी कम होती चली गई।मोदी ने आकर किसानों को ही बाजार के हवाले कर दिया और बैरी बन गए।

2014 से पहले का महाराष्ट्र का सहकारिता घोटाला हो या आज का फसल बीमा घोटाला, कांग्रेस–बीजेपी दोनों बराबर हैं। अगर आप राहुल गांधी को भावी पीएम के रूप में देखते हैं तो ईडी, सीबीआई और सत्ता के उनके प्रति बैर से परे उन देशज ज्ञान के दायरे में उन्हें देखें, जो सोच बदल देती है।मीडिया से परे 10 साल एनजीओ की नौकरी ने मेरी भी सोच बदल दी। आज एक अलग सोच, नजरिए के साथ मीडिया को देखता हूं। फिर भी, गांधीजी की तरह राहुल को वास्तव में पीएम नहीं बनना चाहिए। हाथ बंध जाएंगे। मजबूरियां घेर लेंगी। बदली हुई सोच धरी रह जायेगी।

राहुल को राजनीति की उस मौजूदा विचारधारा को बदलने पर काम करते रहना चाहिए, जिसमें सत्ता की वास्तविक लड़ाई आम जनता से है।समाज की उस सोच को बदलने पर काम करना चाहिए, जिसमें अलगाव के बीज बोए जा चुके हैं। यानी खरपतवारों को उखाड़ने, कीटनाशकों के उपयोग पर सोचना चाहिए।पार्टी में नई पौध लगाने पर सोचें। एक कुशल किसान की तरह, जो किसी भी वैज्ञानिक को धो सकता है। मुझे याद आता है कि गांधी को भुलाने में नेहरू और कांग्रेस ने जरा भी देर नहीं की थी, वरना बापू की नई तालीम अगर शिक्षा का आधार बनती तो समाज सुधर चुका होता। अलबत्ता, गांधी की प्रासंगिकता को मिटा न सके।राहुल की प्रासंगिकता उनकी बदली सोच बने तो बेहतर है। इस बंजर समाज और व्यवस्था को इसी नई सोच की जरूरत है। मुहब्बत की दुकान में मिठास इसी से आयेगी।
राहुल 10 बातें रोपना सिखा रहे हैं
1. अगर मेरी तरह खाली बैठे हों, जिम्मेदारियों से मुक्त हो तो बजाय फोटूबाज़ी करने के, लोगों के मुद्दों को समझो।
2. उस देशज ज्ञान को पहचानो, जिसने देश को कभी आज की तरह भूखा नहीं रखा।
3. उस विकास को समझो, जो 3 एकड़ खेत से 12 लोगों को खिलाता है। कोई भी इंडस्ट्री, नौकरी यह काम नहीं कर सकती।
4. वास्तविक संवाद बनाओ। सम यानी बराबरी से, उनकी तरह बनकर, रहकर। वाद यानी सिर्फ सुनना, विवाद नहीं।
5. स्त्री–पुरुष की उन प्राकृतिक और लैंगिक क्षमताओं को जानो, जो लैंगिक भेदभाव पर आकर टिक गई हैं।
6. समाज के उस ताने–बाने को समझो, जिसमें सह अस्तित्व ही ताकत रही है। आज यही बिखरा है।
7. हाथों के उस कौशल और तकनीक को समझो, जो पीढ़ियों के ज्ञान से उपजा है। यही गांधीजी की तालीम है, जो आज चीन हथियाकर बैठा है।
8. देहातियों को कमज़ोर मत समझो। वे हम शहरियों से लाख गुना अक्लमंद हैं।
9. समाज की उस एकजुट ताकत को समझो, जिसे तोड़कर नहीं, बल्कि बढ़ाकर देश को ताकतवर बनाया जा सकता है।
10. मानवीय श्रम का मूल्य भी समझें, जिसकी जगह मशीनें कभी नहीं ले सकतीं। दोनों का सह अस्तित्व ही आधुनिकीकरण है, वरना बेरोजगारी और तबाही है।
–सौमित्र रॉय , वरिष्ठ पत्रकार