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क्या ‘कब्रिस्तान’ का सच सामने आ सकेगा !
महाराष्ट्र के वर्धा जिले में निठारी कांड जैसा मामला सामने आया है। एक निजी अस्पताल के गोबर गैस चेंबर को नवजात शिशुओं का कब्रिस्तान बना दिया गया। मामले की जांच चल रही है। खुद सहायक पुलिस निरीक्षक सोनुने कह रही हैं कि ये बेहद गंभीर मामला है और हमें संदेह है कि इसके बड़े परिणाम हो सकते हैं। मतलब साफ है कि इस गोरखधंधे में बड़ा रैकेट लिप्त है और इसका जल्द ही पर्दाफाश होगा।
अवैध गर्भपात, प्रतिबंधित लिंग-निर्धारण परीक्षण और यहां तक कि कन्या भ्रूण हत्या जैसी कथित रूप से अस्पष्ट गतिविधियां कई जगह चलती हैं। इसकी जानकारी होते हुए भी लोग इसके बारे में शिकायत करने या खुलकर बोलने की हिम्मत नहीं करते। अगर 13 वर्षीय बेटी के माता- पिता ने हिम्मत न दिखाई होती तो ये मामला भी दब जाता। 17 वर्षीय आरोपी लड़के ने तो उन्हें जान से मारने की धमकी भी दी थी। फिर भी उन्होंने बेटी के साथ हुए अन्याय के खिलाफ आवाज उठाई। जिसके कारण ये भयानक मामला सामने आ सका।
दरअसल इसका खुलासा तब हुआ जब 13 वर्षीय एक नाबालिग गर्भवती हुई और कदम हास्पीटल में 30 हजार रुपये लेकर उसका अवैध तरीके से गर्भपात करा दिया गया। मामला पुलिस तक पहुंचा। पुलिस ने जब बायोगैस प्लांट की जांच की तो होश ही उड़ गए। प्लांट में 11 मानव खोपड़ियां और 56 भ्रूण की हड्डियां बरामद हुईं। आखिर ये मानव कंकाल किसके हैं? क्यों इन्हें बायोगैस प्लांट में रखा गया? किसने , किस मकसद से रखा? ऐसे कई सवाल हैं जिनके जवाब जांच रिपोर्ट आने के बाद ही मिल सकेंगे।
इधर पुलिस ये भी कह रही है कि अस्पताल प्रशासन ने 18 वर्ष से कम उम्र की लड़की का गर्भपात करने से पहले अधिकारियों को सूचना नहीं दी थी। इसका मतलब साफ है कि कानून को ताक पर रखकर अवैध तरीके से गर्भपात किया गया था।
स्वास्थ्य विभाग की उदासीनता का आलम ये है कि 48 घंटे बाद भी चिकित्सा विभाग की ओर से कोई शिकायत दर्ज नहीं कराई गई है। क्या किसी का दबाव है? कौन हैं वो बड़ी मछलियां? इस मामले के तार बड़े लोगों के रैकेट से जुड़े हैं।अभी तक 5 लोग गिरफ्तार हुए हैं। और गिरफ्तारियां होंगी? क्या इस भयावह मामले का सच सामने आएगा या दबाव के चलते फाइल बंद कर दी जाएगी-यही सबसे बड़ा सवाल है। बॉलीवुड एक्टर सुशांत सिंह राजपूत का उदाहरण हमारे सामने है।
ऐसा क्यों होता है कि बड़ी घटना होने के बाद ही मामला सामने आता है और कार्रवाई होती है। निठारी हो या वर्धा- कितने बच्चे जान से हाथ धो बैठे उसके बाद पता चला कि यहां ऐसा हो रहा है। क्यों लोग सामने नहीं आते? क्यों प्रेस-मीडिया ऐसे मामलों को प्रमुखता से नहीं उठाती?
आज भी कई अस्पतालों में इस तरह के काम चल रहे होंगे। जरूरत है उनके खिलाफ कार्रवाई करने की। और एक चीज बहुत जरूरी है कि सोशल मीडिया प्लेटफार्म पर बिना रोकटोक चल रहे नंगापन, लिव इन रिलेशनशिप और आईटी कल्चर के लिए सीमा रेखा तय की जाएं। तभी इस तरह की घटनाओं पर लगाम लगेगी।
क्या कहती है रिपोर्ट
इंडिया स्पेंड की एक रिपोर्ट के मुताबिक, अप्रैल 2016 से जुलाई 2019 के बीच 82 मामलों में से 17% मामलों में अदालतों ने नाबालिग बलात्कार पीड़ितों को गर्भपात की अनुमति देने से इनकार कर दिया।
देश भर की अदालतों में 20 सप्ताह से कम की गर्भावस्था को समाप्त करने की मांग वाली 40 याचिकाओं को दायर करना पड़ा, क्योंकि डॉक्टरों ने गर्भपात करने से इनकार कर दिया। इनमें से 33 मामले बलात्कार पीड़ितों द्वारा दर्ज किए गए थे।
ये हैं नए नियम
चिकित्सा शब्दावली के अनुसार, ‘गर्भपात’, ‘गर्भावस्था’ की समाप्ति है। भारत में गर्भपात के कानून को गर्भ का चिकित्सकीय समापन अधिनियम, 1971 (Medical Termination of Pregnancy- MTP Act) के तहत नियंत्रित किया जाता है।
सरकार ने गर्भपात के नए नियम बना दिए हैं। इसके तहत गर्भ की समय सीमा को 20 सप्ताह से बढ़ाकर 24 सप्ताह (पांच महीने से बढ़ाकर छह महीने) कर दिया गया है।
अब विशेष श्रेणी महिलाओं में यौन उत्पीड़न या बलात्कार या कौटुंबिक व्यभिचार की शिकार, नाबालिग, ऐसी महिलाएं जिनकी वैवाहिक स्थिति गर्भावस्था के दौरान बदल गई हो (विधवा या तलाकशुदा) और दिव्यांग महिलाएं शामिल हैं।
क्या है सजा
अगर किसी महिला की मर्जी के खिलाफ उसका गर्भपात कराया जाता है तो ऐसे में दोषी पाए जाने पर उम्रकैद तक की सजा हो सकती है। आईपीसी की धारा-312 के मुताबिक अगर औरत के बेनिफिट के लिए गर्भपात नहीं कराया गया हो तो ऐसे मामले में दोषियों के खिलाफ कानून में सख्त प्रावधान है।
इस एक्ट के दायरे में वह महिला भी है जिसने बिना कारण गर्भपात कराया है। इस एक्ट के तहत दोषी पाए जाने पर अधिकतम 3 साल तक कैद की सजा का प्रावधान है।
आईपीसी की धारा-313 कहती है कि अगर महिला की सहमति के बिना गर्भपात करा दिया जाता है तो दोषी पाए जाने वाले शख्स को 10 साल तक कैद की सजा हो सकती है या फिर उम्रकैद तक की भी सजा हो सकती है।
– रवींद्र शुक्ला
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अब आएगा रामराज्य?
अयोध्या के राममंदिर में अब ‘रामलला’ आने वाले हैं। देश-विदेश में उत्सव मनाए जा रहे हैं। पीएम मोदी 22 जनवरी को इस भव्य मंदिर का उद्घाटन करेंगे। नरेन्द्र मोदी और उनकी सरकार के प्रयासों से अयोध्या में भगवान राम विराज रहें हैं। अब उम्मीद है कि देश में जल्द ही रामराज्य भी आएगा। परंतु राम राज्य है क्या ? यह जानना बहुत जरुरी है। गोस्वामी तुलसीदास व्दारा रचित ‘रामचरितमानस के उत्तरकाण्ड में ‘रामराज्य’की कल्पना करते हुए एक आदर्श शासन व्यवस्था का प्रारूप प्रस्तुत किया गया है। ‘रामचरितमानस’में तुलसीदासजी कहते हैं –“ दैहिक दैविक भौतिक तापा। राम राज नहिं काहुहि ब्यापा
सब नर करहिं परस्पर प्रीती। चलहिं स्वधर्म निरत श्रुति नीती ” (मानस,उ.कां.२१.१)
भावार्थ:- ‘रामराज्य’में किसी को दैहिक, दैविक और भौतिक तकलीफ नहीं है। सब मनुष्य परस्पर प्रेम करते हैं और मर्यादा में रहकर अपने-अपने धर्म का पालन करते हैं। लोगों को स्वतंत्रा थी पर वे दूसरे की स्वतंत्रा छीन नहीं सकते थे। लोकतांत्रिक मूल्यों की रक्षा के लिए सब कुछ दांव पर लगा दिया जाता था, सुरक्षा, न्याय और जीने का अधिकार सभी को था। जनता सुखी, समृद्ध थी। “रामराज्य’का आदर्श आज भी अनुकरणीय है और बिल्कुल संभव है। उसका पालन पूर्णतः व्यावहारिक है। आइये, आज पूरा देश राममय है, हम श्रीराम के सिखाए आदर्शों को जानकर उन्हें व्यवहार में लाने का प्रयास करें और रामराज्य की आधारशिला रखें। हमारे रामराज्य के आदर्श के रोडमैप पर चलकर कई देशों ने अलग-अलग क्षेत्रों में रामराज्य की स्थापना की है। फिर हम क्यों नहीं कर सकते?
देश का नाम : फिनलैंड
राजधानी : हेलेंस्की
भारत की राजधानी दिल्ली से फिनलैंड मात्र 90 हजार किमी. दूर है। संयुक्त राष्ट्र ने इसे दुनिया का सबसे बेस्ट देश माना है। अब ये दुनिया की सबसे बड़ी इकोनॉमी में से एक बन गई।वर्ल्ड हैप्पीनेस रिपोर्ट 2023 में दुनिया का सबसे खुशहाल देश फिनलैंड को बताया गया है। इस लिस्ट में फिनलैंड के बाद दूसरे नंबर पर डेनमार्क और तीसरे पर आइसलैंड है। भारत 125वें पायदान पर और तुर्की 106 वें स्थान पर है।
कितनी विडंबना है कि हमारे फार्मूले से आज फिनलैंड शिक्षा के क्षेत्र में अपना परचम लहरा रहा है।इस देश ने शिक्षा के क्षेत्र में ‘रामराज्य’के मूल मंत्र ‘समानता’को अपनाया है। फिनलैंड में सभी के लिए शिक्षा मुफ्त और समान है – अमीर हो या गरीब। 99% बच्चे सरकारी स्कूलों में पढ़ रहे हैं। प्राइवेट स्कूल और टयूशन क्लास के लिए यहां कोई जगह नहीं है।
सरकारी नौकरी के लिए एक जैसी योग्यता मांगी जाती है। पूरे देश में टीचर ट्रेनिंग एक समान है। यहां बच्चों पर शिक्षा थोपी नहीं जाती। बच्चे 7 साल की उम्र में सीधे हाईस्कूल में दाखिल होते हैं। इसके लिए उन्हें कोई परीक्षा नहीं देनी होती है। जबकि भारत में बच्चा 2 से 2.5 साल की उम्र में स्कूल में एडमिशन लेता है और इसके लिए माता-पिता का इंटरव्यू लिया जाता है। फिनलैंड में स्कूल टीचर बिल्कुल एक मित्र की तरह बच्चों से पेश आते हैं. 3 वर्ष तक क्लास टीचर रहते हैं ताकि उनका स्टूडेंट से अपनेपन का रिश्ता बन सके और वे बेहतर शिक्षा दे सकें।
प्रिंसिपल, टीचर सब बराबरी से काम करते हैं, कोई भेदभाव नहीं है। आपको जानकर आश्चर्य होगा कि फिनलैंड में साल 1948 में स्कूलों में मिड-डे मिल के लिए कानून लागू किया गया था। प्रिंसिपल, टीचर , स्टूडेंट सब मिलकर एक साथ खाना खाते हैं। बच्चों के स्वास्थ्य का विशेष ध्यान रखा जाता है।
फायदे
1. कोई भी, कभी भी शिक्षा ले सकता है। क्योंकि यहां शिक्षा मुफ्त है।
2.बच्चों को अच्छा स्वास्थ्य और अच्छी शिक्षा मिलती है।
3.पढ़ाई में पिछड़े बच्चों का अच्छा भविष्य बनता है।
4.शिक्षा से स्किल्ड फौज तैयार हो रही है।
खुशी की 5 बड़ी वजहें
सुरक्षित देश
ये सबसे स्थिर और सुरक्षित देश है. यहां की कुल आबादी 55 लाख है। संगठित क्राइम तो यहां न के बराबर है। यहां की पुलिस और इंटरनेट सुरक्षा को दुनिया में दूसरे नंबर पर माना जाता है। कानून का पालन सख्ती से होता है।
आर्थिक सुरक्षा
यहां हर नागरिक को आर्थिक सुरक्षा, अधिकार और सुविधाएं हासिल हैं। उन्हें कभी ये नहीं सोचना पड़ता कि उनकी नौकरी चली गई तो क्या होगा या फिर अगर वो बूढ़े हो गए और उनके पास धन नहीं है तो क्या होगा या कोई दुर्घटना या तबीयत खराब हो जाए तो इलाज कैसे होगा? ये सारा जिम्मा सरकार उठाती है।
सबसे कम भ्रष्टाचार
यहां भ्रष्टाचार सबसे कम है। कहा जाता है कि यहां का समाज सबसे प्रोग्रेसिव है।
कोई बेघर नहीं
हालांकि यहां की जीडीपी कम है। ये दुनिया का अकेला देश होगा, जहां कोई बेघर नहीं है। अर्थव्यवस्था बहुत मजबूत है।
शुद्ध हवा और शुद्ध पानी
शुद्ध हवा के मामले में ये दुनिया के तीसरे नंबर का देश है। वर्ल्ड हेल्थ आर्गनाइजेशन की रिपोर्ट में ये बात कही गई है। वहीं पानी के मामले में दुनिया में बेहतरीन स्थिति में है। इसे झीलों का देश भी कहते हैं।वहीं यहां काफी बडी मात्रा में जंगल हैं।
बेहतरीन शिक्षा व्यवस्था
यहां की शिक्षा व्यवस्था की मिसालें पूरी दुनिया में दी जाती हैं। ये दुनिया के सबसे साक्षर देशों में भी है।
फिनलैंड की आबादी सिर्फ 58 लाख है। इनके लिए दो ही सहारे हैं शिक्षा और जंगल। इन्होंने शिक्षा पर फोकस किया है और इस क्षेत्र में रामराज्य लाए। यही वजह है कि अकादमिक या व्यावसायिक उच्च विद्यालयों से 93 प्रतिशत फिन स्नातक हैं।फिनलैंड के 66 प्रततिशत स्टूडेंट्स हायर एजुकेशन हासिल करते हैं जो यूरोपीय संघ में सबसे अधिक है। जरूरत है हमें फिनलैंड से सीखने की ताकि आने वाले बच्चे सुखद भविष्य का सपना देख सकें। आखिर फिनलैंड हमारे ही कांसैप्ट पर काम कर रहा है। फिर हम क्यों नहीं कर सकते? आ सकता है भारत में भी ‘रामराज्य’।
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कौन बनेगा सीएम
भोपाल.मध्य प्रदेश विधानसभा चुनाव में बीजेपी ने ऐतिहासिक विजय प्राप्त की है। प्रदेश में शिवराज सिंह चौहान के नेतृत्व में बीजेपी की सरकार चल रही है, लेकिन बीजेपी की तीन राज्यों में जीत के बाद भी अभी तक सीएम के नाम का ऐलान नहीं हुआ है। इस बीच मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने कहा कि “मेरे जेहन में एक ही मिशन है 2029। उन्होंने कहा, मैं वही करूगा, जो पार्टी कहेगी।” चौहान ने कहा कि यह काम मेरा नहीं है, मेरी पार्टी का है। मैं केवल अपने काम करने में रूचि रखता हूं। बाकी चिंता पार्टी को करनी है। वह पार्टी करेगी। जो काम जिसका है, वह करे, मैं वह चिंता क्यों करूं? ”
मोदी के गले में 29 फूलों की माला पहनाना है
शिवराज सिंह चौहान ने कहा, “मैं भाजपा का कार्यकर्ता हूं. एक बड़े मिशन के लिए काम करना है।जनसंघ के निर्माताओं ने जो सोचा था, उसे पीएम मोदी पूरा कर रहे हैं।”सीएम ने कहा, “विधानसभा चुनाव में विजय के बाद एक मात्र लक्ष्य लोकसभा चुनाव जीतना है, क्योंकि मैं मानता हूं कि देश के लिए पीएम मोदी आवश्यक हैं। अगले लोकसभा चुनाव में एमपी की सभी 29 सीटें जीतेंगे। मध्य प्रदेश से 29 सीटें जीत कर पीएम मोदी के गले में 29 फूलों का माला पहनाना है। मोदी प्रधामंत्री जी बनेंगे, इसलिए हमारा मिशन 29 आरंभ हो गया है।”
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सत्ता का सेमीफाइनल हार चुके हैं खड़गे
कांग्रेस में भूपेश बघेल, अशोक गहलोत और कमलनाथ जैसे अहंकारी और पार्टी हाईकमान के निर्देशों को ठेंगा दिखाने वाले नेताओं को रास्ता दिखाने का वक्त है।खड़गे को मालूम होना चाहिए कि वे सत्ता का सेमीफाइनल हार चुके हैं। अगर क्रिकेट की तरह सियासत में भी नॉकआउट होता तो कांग्रेस 2024 के सीन से गायब थी।ये वही नेता हैं, जिन्होंने पार्टी नेतृत्व को लगातार झांसा दिया कि हम जीत रहे हैं और आज INDIA को कमज़ोर कर दिया।
असल में जीते तो सुनील कोणुगोलू हैं, जिनकी रणनीति ने 3 राज्यों में पार्टी की सरकार बना दी।उसी सुनील को नकुल नाथ के भोपाल वाले मकान से खदेड़ दिया गया, क्योंकि कमलनाथ बागेश्वर बाबा के पैरों में गिरना चाहते थे।
खड़गे को यह भी पता रहा होगा कि भूपेश बघेल ने किस तरह मंत्रियों के पर काटे। किस तरह विधायकों की ताकत अफसरों से कम करवाई गई। और यह भी कि किस तरह अशोक गहलोत सचिन पायलट को नीचा दिखाने के लिए यह कहते रहे कि मैं नहीं, कुर्सी मुझसे चिपकी है। आज कुर्सी नहीं है। घर बैठें। कांग्रेस नेतृत्व चुप रहा, क्योंकि यही नेता पार्टी और कार्यकर्ताओं के लिए फंड जुगाड़ रहे थे। कांग्रेस संगठन को सख्त अनुशासन की जरूरत है, बीजेपी की तरह।अगर कांग्रेस 2024 का फाइनल नहीं जीत पाती है, तो समझ ले कि आगे कभी जीत नहीं पाएगी।
– सौमित्र रॉय , वरिष्ठ पत्रकार.
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